बुधवार, 8 नवंबर 2023
रविवार, 22 अक्टूबर 2023
सुनो स्त्री
#सुनो_स्त्री
#दुर्गा पूजा पंडालों में
बजते घंटे, घड़ियाल
आरती की गूंज
धूप, दीप, नौवेद्य
अछत, अलता
नौ दिन उपवास
हवन, दुर्गा पाठ
कन्या पूजन
से तुमको यदि
स्त्री को पूजे जाने
का गुमान हो
तो तुम गुमान
मत करना..
छद्मवादी समाज में
हम तुमको नहीं,
तुम्हारी मूर्ति
को पूजते है...
पूजा वाले हाथ ही
तुम्हारे देह भी नोंचते है..
तभी तो
तुम्हारे लिए
सपने भी
हम ही बुनते है..
और
तभी तो
हम तुमसे
तुम्हारा स्वाभिमान
स्वबोध, स्वतंत्रता
सब छीनते है...
शुक्रवार, 18 अगस्त 2023
वह भी आदमी ही है
वह भी आदमी ही हैअरुण साथीहम जहां है, वहीं से हीहमे नीचे देख लेना चाहिएइसलिए नहीं है कियह कोई अनिवार्य शर्त हैबल्कि इसलिए कीनीचे देख लेने भर से हीहमे ठोकर लगने की संभावनाकम हो जाती हैऔर इसलिए भी कीनीचे देखने भर से हीहम देख पाते हैबगैर नीचे देख करचलनेवालें चोटिल हुएआदमी को...और इसलिए भी किजब हम, जहां हैंवहां से नीचे देखते हैंतो सिर्फ अपनी आंखों से हीनहीं देखना चाहिएहमें अपनीसंवेदनाओं में उतर करभी देख लेना चाहिए..और इस तरहदेखने पर ही दिखेगाकि मंदिरों के बाहरएक रोटी के लिएतरसता आदमी जैसा एक भिक्षुक भी आदमी ही हैतब कहीं दिखेगाकि बगैर हाथ-पैर कालोथड़ा जैसा दिखने वालावह आदमी भीआदमी ही हैऔर दिखेगा यह भी किहाड़तोड़ मेहनत करतावह मजदूर जैसा आदमी भीएक आदमी ही हैऔर तब हमछोड़ देगेंईश्वर से हर बात को लेकरशिकायत करना...
लेबल:
(काव्य),
अजीब आदमी,
आदमी,
काव्य संग्रह,
kavita
सोमवार, 26 जून 2023
आसन नहीं है पिता होना
आसन नहीं है पिता होना
कहां आसान है
किसी के लिए
पिता होना
और
आसान कहां है
पिता के लिए
कुछ भी,
यहां तक की रोना भी
कहां रो पाता है पिता
दर्द में, खुल कर अक्सर
कभी कभी जब टूटता है अंदर से
तो रोता है अंदर ही अंदर
और फिर हंसना तो
जैसे पिता के लिए
और भी आसान नहीं
मुश्किलों से लड़ते लड़ते
खुलकर हंसे तो
पिता के लिए
युग हो जाता है
कभी कभी हंस लेता है
पिता,
कठ्ठ हंसी
जैसे कुछ छुपा रखा हो
अपने अंदर
अब कहां आसान है
मुश्किलों से लड़ते
पिता के लिए
सांस तक भी लेना...
बुधवार, 21 जून 2023
मन की बात
मन की बात
(अपने 50वें जन्म दिन पर (कल) लिखी कविता)
आज तक
जीवन को सार्थक
कर न पाया
नैतिकता की
कसौटी पर
जिसे खरा पाया
उसी के साथ
पग बढ़ाया
लड़खड़ाया
गिरा, संभला
उठा ,चला
जीवन भर
खुद को
यात्री ही पाया
बहुत लोगों
से मिला
बहुत कम
से जुड़ पाया
जिससे जुड़ा
उसका अपनत्व
भाया
इस अकिंचन को
सबने अपनाया
इसी यात्रा में
विषधर
आस्तीन में समाया
कुछ ने विष वमन की
कुछ का विष पचाया
कुछ प्रपंची ने
करने को वध
चक्रव्यूह रचाया
बेसहारा हो
सातवें चक्र में
अभिमन्यु की तरह
खेत आया
चरैवेति चरैवेति
जीवन का मंत्र बनाया
सब कुछ के बाद भी
जीवन को सार्थक
कर न पाया....
सोमवार, 12 जून 2023
मौत से निदंद
जाने क्यों
अब मरने से
डर लगता है
पर जब भी
डरता हूँ
तब
कई तर्क वितर्क
मन को
मथने लगतें है
एक मन कहता है
जिसकी मौत
सुनिश्चित नहीं
उसे कौन
मार सकता है
दूसरा कहता है
जिसकी मौत
सुनिश्चित है
उसे कौन
बचा सकता है..
और बस
मैं, निदंद हो जाता हूं..
लेबल:
(काव्य),
hundi kavita,
kavita,
maut se dar
रविवार, 4 जून 2023
लाशों के सौदागर
लाशों के सौदागर
दुर्घटनाग्रस्त
रेल गाड़ी हुई
सैकड़ों लोग की जान गई
चीत्कार उठा भारत
पर उनकी बांछे
खिल उठी
उनका कुनवा
खिलखिला उठा
देश के प्रधान
की छाती पर
रख कर पैर, पूछ रहे वे
बता, कौन है जिम्मेवार
सोच रही माता भारती
उनके बच्चों की मौत पर
किस तरह से करते है ये
लाशों का भी कारोबार...
रविवार, 8 जनवरी 2023
ठोकर
ठोकर
1
वह जा रहा था
सामान्य गति से
अचानक से
रास्ते में ठोकर लगी
वह गिर गया
वह चोटिल हुआ
पैर में जख्म लगे
रक्त बहा
आंसू बहे
आसपास के लोग
सहानुभूति में देखने लगे
एक-दो ने मदद में हाथ
भी बढ़ाया
2
वह आहिस्ते से मुस्कुराया
कपड़े से धूल-गर्दा
साफ किया
फिर उठ खड़ा हुआ
और चलने लगा
वह एक बच्चा था..
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