रोज डे पे साथी के बकलोल वचन
(अरुण साथी)
🌹🌹🌹
रोज डे पे श्रीमती जी को
जब गुलाब दिया
तो उसके चेहरे पे
प्रेम का भाव नहीं पाया,
मैं अत्यधिक घबराया,
मन में संशय आया,
कहीं किसी ने
मुझसे पहले तो
गुलाब नहीं थमाया!
🌹🌹🌹
पूछा,
"प्रिय, अपनी शादी के
सिल्वर जुबली बर्ष पे भी
मैंने तुम्हें ही गुलाब थमाया,
फिर तुमने
मेरे रगो के खौलते लहू में
अपनी शीतलता का
भाव क्यों मिलाया?"
😡😡😡
श्रीमती जी और भड़क गयी,
"कलमुहें,
क्या मैं तुम्हें
जानती नहीं?
जरूर यह गुलाब किसी
कलमुंही के लिए ख़रीदा होगा,
मेरे लिए तो आज तक
एक बिंदी भी नहीं लाया....!
जानता नहीं कि
बासी कढ़ी में उबाल नहीं आता।
तुम गधे मर्द तो
सुहागरात के अंधे होते हो,
तुम्हें हमेशा दूसरी
तरफ की सूखी घांस भी
हरी हरी
नजर है आती है,
दूसरी वाली जरलाही भी
मन को भाती है,
अपनी बीबी तो
हर बात पे काट खाती है..।
मैं तो अवाक रह
सोचने लगा,
बीबी और मोदी जी में
कितनी समानता है,
एक "मन की बात" करते है,
एक "मन की बात" पकड़ती है..।
मोदी भी अकड़ते है,
बीबी भी अकड़ती है...।।।
(अरुण साथी)
🌹🌹🌹
रोज डे पे श्रीमती जी को
जब गुलाब दिया
तो उसके चेहरे पे
प्रेम का भाव नहीं पाया,
मैं अत्यधिक घबराया,
मन में संशय आया,
कहीं किसी ने
मुझसे पहले तो
गुलाब नहीं थमाया!
🌹🌹🌹
पूछा,
"प्रिय, अपनी शादी के
सिल्वर जुबली बर्ष पे भी
मैंने तुम्हें ही गुलाब थमाया,
फिर तुमने
मेरे रगो के खौलते लहू में
अपनी शीतलता का
भाव क्यों मिलाया?"
😡😡😡
श्रीमती जी और भड़क गयी,
"कलमुहें,
क्या मैं तुम्हें
जानती नहीं?
जरूर यह गुलाब किसी
कलमुंही के लिए ख़रीदा होगा,
मेरे लिए तो आज तक
एक बिंदी भी नहीं लाया....!
जानता नहीं कि
बासी कढ़ी में उबाल नहीं आता।
तुम गधे मर्द तो
सुहागरात के अंधे होते हो,
तुम्हें हमेशा दूसरी
तरफ की सूखी घांस भी
हरी हरी
नजर है आती है,
दूसरी वाली जरलाही भी
मन को भाती है,
अपनी बीबी तो
हर बात पे काट खाती है..।
मैं तो अवाक रह
सोचने लगा,
बीबी और मोदी जी में
कितनी समानता है,
एक "मन की बात" करते है,
एक "मन की बात" पकड़ती है..।
मोदी भी अकड़ते है,
बीबी भी अकड़ती है...।।।