शुक्रवार, 29 सितंबर 2017

रावण

प्रकांड विद्वान
सिद्ध तपस्वी
शिव भक्त
ब्रह्मा वंशज
स्वप्नद्रष्टा
अजर-अमर
होकर भी वह
नायक नहीं
कहलाता है,

एक अहँकार से
हर कोई रावण
हो बन जाता है..

आईये इस दशहरा
अपने अहंकार का
पुतला बनाते है,
अपने ही हाथों
अपने अंदर के
रावण को जलाते है..

अरुण साथी
(विजयादशमी की शुभकामनाएं)