शुक्रवार, 21 मार्च 2014

कभी कभी उदास होता हूँ....

बस यूँ ही कभी कभी उदास होता हूँ।
कुछ दर्द टीसते है तो छुप के रोता हूँ।।

जिंदगी से गिला भी हो तो क्या होगा।
ख़ुशी वहीँ मिलती है, जहाँ खोता हूँ।।

जिंदगी में जब ग़मों का दौर होता है।
फिर जिंदगी में कहाँ कोई और होता है?

कुछ अपने भी होते है बेगाने की तरह।
कोई बेगाना अपना बना लेता है।।

कोई दगा देके साथ होता है।
कोई जिंदगी देके सिला देता है।।

कोई चुपचाप रोता रहता है।
कोई अश्कों को प्याला बना देता है।।

शनिवार, 15 मार्च 2014

बुरा न मानो होली है...

केजरीवाल
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दुर्वाषा की तरह बन गयो हे ‘‘आप’’।
घूम-घूम के खाली-पीली दे रहो हे श्राप।।
आम आदमी की महिमा हे बड़ी ही भारी।
टेम्पू, मैट्रो अ मर्सिटीज की करे सवारी।।

मोदी
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रामकृपाल, रामविलास, हाय तेरा सपना।
राम नाम जपना, पराया माल अपना।।

सोनिया
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मैडम जी अब किसको दें इल्जाम।
चुनावी चक्कर में ‘‘माया’’ मिली न ‘‘राम’’।।

मुलायम
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सब किया-धरा गुड़-गोबर भय गयो।
बेट को कुर्सी दियो, ढीले तेबर भय गयो।।


गुरुवार, 6 मार्च 2014

जास्ती केजरीवाल बनने का नै......

जन्नत गुजरात में है, मान लो,
फालतू में सान-पट्टी करने का नै।

मार-कुटाई होगी,
ऑफिस पे चढ़ने का नै।

67 साल से लूट, बांट खा रहे,
59 दिन में भागने का नै।

जमाना बदल गया, तुम भी बदलो,
"चिल्लर" के डर से लंगोटी बांधने का नै।

पोल्टिक्स करनी हो तो
धर्म, जाति, वंश
सत्ता, कुर्सी, नेता
कॉरपोरेट, भ्रष्टाचार
का पैर पूजो,

जास्ती केजरीवाल बनने का नै.....
जास्ती केजरीवाल बनने का नै.....

शनिवार, 1 मार्च 2014

अहमक (चंद टुकड़े)

दुनिया-ए-बाज़ार में रहा अहमक की तरह।
साथी तुझे सौदागरी नहीं आती।

कुछ मोल भाव भी हो रिश्तों में। 
तुझे तक़ल्लुफ़ की बाज़ीगरी नहीं आती।
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वही शाम, वही सुबह है।
ठहरी जिंदगी, बंजर है।।

वक्त ही न मिला की खुल के साँस ले सकूँ।
ये कैसी ग़ुरबत, ये कैसा मंज़र है।।

गैर तो गैर  है उनसे शिकवा कैसा।
यहाँ तो अपनों के हाथ में खंजर है।।
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बड़े बेमुरौअत हो, संग दिल हो।
जाने क्यूँ मेरी मोहब्बत में शामिल हो।।