मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

हौसला रखना।।



मुझसे बस इतना सा गिला रखना।
गलत होगे तो सुनने का हौसला रखना।।

मैं आदतन आदमी कुछ खराब हूं।
मुझसे तालुकात में थोड़ा फासला रखना।।

जमाने से कुछ जुदा है फितरत साथी की।
मोहब्बत है तो रूठने-मनाने का सिलसिला रखना।।

कुछ टुकड़े
1
राख अगर है तो चिंगारी भी होगी।
इसी से जुल्म को जलाने की तैयारी भी होगी।।
2
बिछड़कर भी उनको मुझसे शिकायत है।
ना खुदा, यही तो इश्क की रवायत है।।
3
मेरे अजीज इतनी सी इनायत रखिए।
दोस्ती के सिरहाने लफ्जों में शिकायत रखिए।।
4
गुनहगारों से गुनाहों का सबब पूछते हो।
ना खुदा, क्यों बन बेअदब पूछते हो।।
5
आज फिर मौसम ने शरारत की है।
सूरज को कोहरे में छुपाने की हिमाकत की है।





रविवार, 19 फ़रवरी 2012

दीवारों के भी जुबान होते है....


वहां, जहां तुम्हें लगे कोई साथ नहीं है
और सबने बना ली है मौन की दीवार
तुम आवाज लगाना...

तब, जब लगे कि यह जुल्म की इम्तहां है
और तुम हो अकेले
एक आवाज लगाना...

नहीं तुम अकेले नहीं होगे
दीवार के उस पर भी
रहते है कुछ जिंदा लोग
जिन तक पहुंचेगी
तुम्हारी आवाज

भले दीवार के उस पार
कोई देख नहीं सकता
पर, सुना तो होगा ही कि
दीवारांे के भी कान होते है
और जब कुछ लोग
होगें तुम्हारे साथ खड़ा
तब तुम पाओगे कि

दीवारों के भी जुबान होते है..

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

कोकून और आदमी




सतत हरे भरे का ग्रास कर
अपनों के लिए बनाया
एक रेशम का घर....?

कराहती रही
शहतूत की कोमलता
और बना हमारा कोकून....?



फिर अनवरत संधर्ष किया
कोकून से बाहर आने का...



फिर कोई रेशमी धागे का लोभी
डाल देता है कोकून को
खौलते हुए पानी में....


फिर वही कोकून बन जाता है
अपनों के लिए श्मशान....?

रेशम के कीड़े और मुझमें
कितनी समानता है...






















गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

बदनाम होने का हैसला चाहिए।


यूं ही विचारों कें समुद्र में उतर कर शब्दों को ढुंढने और
संजोने की आदत से लाचार कुछ लिख लेता हूं,
आपसे साझेदारी कर रहा हूं।















1
बदनाम होने का हैसला चाहिए।

अगर उल्फत है तो कुर्बान होने का भी हौसला चाहिए।
बुर्कानशी जहां में बदनाम होने का भी हौसला चाहिए।।

रोज मरते हैं यहां अकबर, सजता है मातमें बज्म भी।
बेखुद जिंदगी जी, गुमनाम मरने का भी हौसला चाहिए।।

वो जो जीते है फकत वहीं जिंदगी नहीं होती।
मुफ्लीसी में भी जीने का हौसला चाहिए।

(बज्म-सभा)
(बेखुद-आनन्दमग्न।)












2
एक मुस्लस्ल जिंदगी ही बोझ बनती है यहां,
सात जन्मांे के कसम की बात ही बेमानी है।
तुम कहो तो कर भी लूं, वादा मगर जब टूटेगा,
ये सनम यह इश्क की बदनामी है।।

3
रूठ कर जब मिलती हो सनम तो आफताब लगती हो,
मशक्कतो-मेहनत से हासिल खिताब लगती हो।







शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

आखरी आदमी हत्या ?


उस दिन
जब मार दिये जाएगें
वह आखरी आदमी भी
जो कर रहा है संघर्ष
गांव/मोहल्लों
गली/कूंचों
में रहकर,
अपने आदमी होने का....


आज जहां
थोक भाव में बिकते ईमान
और खरीदे जाते आबरू के बाजार में
कोई इसको बचा कर
चुनौती देता है तुम्हें....



आज जहां
सौ रूपये की खातिर
भाई भाई का खून बहाते,
कोई आदमी होने के लिए
लाखों खाक में मिलाते!
अपनों को अपनाते...

तुम बैठ कर सोंचना?
आखिर
आदमी की तरह
दिखने पर भी
तुम आदमी क्यों नहीं हो......