शनिवार, 26 मई 2012

देवता के होने पर सवाल उठाता राहू-केतू


कई बार जिंदगी को जीते हुए खामोशी से बिष पीना पड़ता है, कहीं कोई धन का तो कहीं कोई विद्वता का विष वमन कर देता है। मन में एक टीस सी उठती है और फिर कलम से कविता निकल पड़ती है। कहीं कहीं देवता साबित करने के लिए लोग क्या क्या नहीं करते, अपनी बुराईओं को भूल आप पर सवाल खड़े करते है, मैं आज देवता के होने पर ही सवाल खड़ा कर रहा हूं. आप प्रतिक्रिया दे, थोड़ी देर रूक कर पढ़े.... फिर कुछ कहते जाए...


अमृत बंटते समय
मैं भी खड़ा हो जाता
देवाताओं की पांत में
पर मैं राहू की तरह साहसी नहीं था...

पर आज भी राहू-केतू
साहस से
शापित होकर भी
सवाल खड़े किए हुए हैं
देवताओं के देवता होने पर...

सवाल
जो उठता है
देवताओं के अमरत्व पर
उनके छल पर...

भले ही नहीं सुनो
पर पूछोगे तो कभी...

"कि" इस नक्कारखाने में
तूती की यह आवाज कहां से आ रही है...

रविवार, 20 मई 2012

संगमरमर का आदमी



तुम तो कहते थे अमीरे शहर जन्नत होती है।
मैंने तो यहां संगेमरमर का आदमी देखा।।

तुम तो कहते थे इसके लिए है दीवानी दुनिया।
मैंने तों यहां से भागने की छटपटाहट देखी।।

तुम तो कहते थे बहुत शकूं है यहां।
उसने तो मुझसे ही शकूं का पता पूछा।।

मंगलवार, 8 मई 2012

हन्ता














आकर बैठ गया है

सिद्धांत
सांप की तरह
सिरहाने में
कुण्डली मार कर...

नागपास की तरह
जकड़ लिया है
अस्तित्व को..
और डंस रहा है
सबको
पर
हन्ता होने का एहसास
तक मुझे नहीं होता...

शनिवार, 5 मई 2012

जिंदा रहूंगा अमर होकर

खौफ मुझकों न कभी तुफां का रहा,
मैं जलता हूं अपने जुनूं का असर लेकर।

जिंदगी से है मोहब्बत, पर मौत से भी यारी है,
ये समुद्र लौट जाओं तुम अपना कहर लेकर।।

वे और होगें जो मरते हैं गुमनाम होकर,
इस जहां में मैं जिंदा रहूंगा, अमर होकर।

2
कभी कभी जिंदगी भी दगा देती है, देर तक साथ रह, सजा देती है।
बेमुरौव्वतों की वस्ती में साथी, मौत भी आकर कभी वफा देती है।।

3
गुरवतों के दिन भी तुमने शिददत से निभाई यारी।
साथी, बेमुरौव्वत जहां में तुमको नहीं आती दुनियादारी।।

बुधवार, 2 मई 2012

सजाए मौत


अपराधी की तरह
कठघरे में खड़े
प्रेम से
न्यायाधीश ने
उसके होने की वजह
पूछी,

निरूत्तर प्रेम
अपने अस्तित्व का
कोई वजह
नहीं कर सका पेश

और
न्यायाधीश ने उसे
सजाए मौत दे दी.....

मंगलवार, 1 मई 2012

मजदूर..


सर झुकाये
मौन
चुपचाप..
सुन रहा है गालियां..
पूरे दस मिनट देर से काम पर आया है
गुनहगार!
.
.
थक गया है
काम करते-करते
खैनी बनाने के बहाने सुस्ता रहा है,
या फिर मूतने का बनाता है बहाना।

मालिक फिर चिल्लाया..
साले

हरामी

इसी बात की मजदूरी देता हूं....

हमारे घर भी आते हैं ये मजदूर!



(मजदूर दिवस पर एक पुरानी रचना)