साथी
ठोकरें खाकर अपनों की
जब से संभल गए साथी!
दुनियादार क्या हुआ,
कहते हैं बदल गए "साथी"!!
जिनसे था ग़ुरूर वही
लोग मतलबी निकले,
एक कदम जो तेज चला,
चाल चल गए साथी!!
इक मोहब्बत के नाम जो
कर दी जिंदगी अपनी!
जमाने ने हँसकर कहा,
बेगैरत निकल गए साथी!!
छाँव बनकर ताउम्र
जिनके साथ रहा,
दौरे गुरबत में मुंह फेर
वे भी निकल गए साथी!!
#अरुण_साथी (21/11/17)