शनिवार, 29 मई 2021

अनुत्तरित

अनुत्तरित
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खुद ही भट्ठी बनाई 
भाथी भी खुद ही बनाया
खुद ही कोयले सजाए 
धीरे-धीरे भाथी से हवा दी
आग सुलगाई

फिर खुद ही खुद को
झोंक दिया
लहलह लहकती भट्ठी में

फिर खुद ही छेनी-हथौड़ा ले
काट-पीट कर 
औजार बनाए 
कभी हंसुआ 
कभी हथौड़ा
कभी खुरपी 
कभी हल 
कभी कलम 
कभी-कभी तलवार भी

फिर एक दिन 
अपनों ने ही पूछ लिया 
किया क्या जीवन भर...

सोमवार, 24 मई 2021

घर-वापसी

दरवाजे खिड़कियां
खुली रखी थी हमेशा
हर कोई आ-जा सकता था
बेरोकटोक
हवाओं की तरह
दृश्य-अदृश्य
स्पृह-अस्पृह
न जाली, न पर्दे, न शीशे
सब कुछ खुला खुला
एक दिन अचानक
मृत्यु ने दस्तक दी
कहा, चलो
चौंक गया
यह क्या
ना शोर, न शराबा
ना विरोध, न प्रतिरोध
यह कैसे
कहा- घर वापसी