सुनो स्त्री
तुम खुश मत होना
महिला दिवस पे बधाई पाकर
क्योंकि ये वही लोग है
जो उपासना के बाद
कन्या पूजन कर
तुमको निर्भया बनाते है...
ये वहीं हैं
जो तीन तलाक
बुरके, हलाला
को मर्यादा कहते नहीं अघाते है..
ये वहीं है
जो घरों से बाहर
निकलते ही
तारते है तुम्हारे
उरोज, नितंब
और मुस्कराते है...
ये वहीं है
जिनकी हर गाली में
तुम्हारी अस्मिता
तार तार होती है
फिर भी तुमको
माँ, बहन और बेटी बताते है...
हाँ ये वहीं हैं
जो बलात्कारी को नहीं
तुम्हें कठघरे में लाते है
तुमको ही लजाते है
दहलीज से बाहर
कदम रखते है
तुम्हें कुलटा बताते है
ये वहीं है
जो बेच कर बेटों को
अपनी शान दिखाते है
फिर जला कर तुम्हें
अपनी मर्दांगी दिखाते है
सुनो स्त्री
न तुम पहली स्त्री हो
जिसके बोलने पे
जुबान काट दी गयी
न तुम आखरी स्त्री होगी
जो अपनी आज़ादी के लिए
लड़ते हुए जिबह कर दी जाओगी
समाज के न्यायालय में
हाँ, सुनो स्त्री
ये वही लोग है
तुम इनके हाथों लड़कर शहीद होना
कबूल कर लेना
क्योंकि
जीते जी मरने से अच्छा
मरकर जीना होता है...