शनिवार, 21 जून 2014

माँ, बचपन और मेघ



















आओ मेघ में भींग कर, मजा लें
माँ की डाँट सुने, 
बाबू जी के मार का मजा लें...

मेघ में भींग कर आम चुने
मतलू चाचा को छकायें
उनकी गाली सुने

बिजली चमके तो सहम जाये
डरकर आम की पेंड़ को 
माँ समझ, लिपट जाये
गिरे आम तो
सबसे पहले झटप जाये
फिर......
आम के पत्ते का 
बना कर बाजा, बजा लें
आओ मेघ में भींग कर, मजा लें...

गड्ढों में छपाक-छप कूदें
कादो, मिट्टी को माँ की तरह चूमें
लोट-पोट कर, मन सजा लें
आओ मेघ में भींग कर, मजा लें..... 

फिर सर्दी, बुखार हो तो
माँ सरसो तेल गर्म कर 
माथे पे लगाए
गर्म दूध में हल्दी मिलाए
डाँट-डाँट कर मुझे पिलाए
स्कूल न जाए 
घर में उधम मचाए
माँ को फिर सताए
उसकी डाँट को लोरी समझ पचा लें
आओ मेघ में भींग कर, मजा लें

आओ, आओ
जिन्दगी की जद्दोजहद भुलाये
उदास मन को फिर से बहलाये
सूनापन मिटाए
अंदर मरते हुए बचपन को बचा ले
आओ, आओ मेघ में भींग कर, मजा ले

शुक्रवार, 13 जून 2014

साहेब, बीबी और अच्छे दिन..

47 साल बाद साहेब ने जब 
शपथ पत्र में बीबी की डाला
तो तिवारी बाबा ने भी
लिए सात फेरे 
और 88 साल की उम्र में 
डाल ली वर-माला!

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दिग्गी भी पीछे क्यूं रहते?
स्वर्गवासी बीबी का गम क्यूं सहते?
इसलिए 67 साल में रसपान किया,
भेद खुलने पर 
गुटुर गूं, गुटुर गूं की बात मान लिया..

शनिवार, 7 जून 2014

उल्फ़त यूँ आजमाती है...

सताती है, रुलाती है।
उल्फ़त क्या क्या कराती है?
रूठती है , मनाती है। उल्फ़त ऐसे जताती है।।
रोती है, हँसाती है। उल्फ़त यूँ ही सुहाती है।।
बुलाती है, न आती है। उल्फ़त नखरे दिखाती है।।
मिलती है, न पास आती है। उल्फ़त यूँ आजमाती है।।
जलाती है, बताती है। उल्फ़त में यही भाती है।।
गाती है, बजाती है। उल्फ़त यूँ रिझाती है।।