(अरुण साथी)
एक दिन उठ खड़ी होगी बेटी
हर उस घर, गांव,
समाज और देश से
जहां उसके मनुष्य
होने पर सवाल
उठेगा
वहां से भी
उठ खड़ी होगी बेटी
जहां
बेटी का जीवन
उसका अपना नहीं होगा
वहां से भी जहां
बेटी के लिए सजा
रखें है सोने के पिजड़े
वहां भी जहां
तय करेगा आदमी
एक स्त्री के
सांसों के नियम
और जला लेगी बेटी
बुर्का,
काट लेगी बेटी
चोटी..
और टांग देगी
मर्दों की
तथाकथित मर्दानगी
उसके अपने ही
लंगोट में...