बुधवार, 28 अगस्त 2024

मैं भी तो खबर बनूंगा

मैं भी तो खबर बनूंगा 
--
सोचता हूं 
खबरों को जीते-जीते 
किसी दिन अचानक से 
मैं भी तो खबर बनूंगा


कुछ अपने शोक संवेदना में 
कुछ शब्द लिखेंगे 
कुछ नमन, विनम्र श्रद्धांजलि
लिखकर अपनी 
औपचारिकता पूर्ण करेंगे 

कुछ अपने रो-धो लेंगे 
कुछ दिन 
 
सोचता हूं 
क्या कोई मेरे लिए उदास होगा 

कोई मुझे, मेरे बाद 
मुझे याद करेगा

कोई मुझे, मेरे बाद भी 
प्यार करेगा 

फिर सोचता हूं 
किसी के लिए 
आज तक तो
ऐसा हुआ नहीं है  
तब 

 तस्वीर व्हाट्सएप एआई ने दिए गए निर्देश पर बनाकर दिया है
--
सोचता हूं 
खबरों को जीते-जीते 
किसी दिन अचानक से 
मैं भी तो खबर बनूंगा

कुछ अपने शोक संवेदना में 
कुछ शब्द लिखेंगे 
कुछ नमन, विनम्र श्रद्धांजलि
लिखकर अपनी 
औपचारिकता पूर्ण करेंगे 

कुछ अपने रो-धो लेंगे 
कुछ दिन 
 
सोचता हूं 
क्या कोई मेरे लिए उदास होगा 

कोई मुझे, मेरे बाद 
याद करेगा

कोई मुझे, मेरे बाद भी 
प्यार करेगा 

फिर सोचता हूं 
किसी के लिए 
आज तक तो
ऐसा हुआ नहीं है  
तब 

 तस्वीर व्हाट्सएप एआई ने दिए गए निर्देश पर बनाकर दिया है

रविवार, 21 जुलाई 2024

बधिया

बधिया 
(अरुण साथी)

जनतंत्र के राजा के लिए 
बहुत आवश्यक है कि 
वह जो बोलते हैं
देश भी वही बोले 

आवश्यक यह भी है कि 
वह जो नहीं बोलते हैं 
देश वह भी बोले 

यह तो और भी आवश्यक है कि 
वह जब बोलने नहीं कहें 
तब कोई कुछ भी नहीं बोले 
सब रहे चुप, एकदम चुप 

अब इस प्रकार की 
शांति व्यवस्था के लिए 
बहुत आवश्यक है कि 

जाति 
धर्म 
विचारधारा के औजार से 
आदमी का बधिया कर दिया जाए 
बस

(नोट-वर्तमान राजनीति से इसका कोई संबंध नहीं है।)

शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

देह

देह 

शनिवार, 29 जून 2024

अहं ब्रह्मास्मि

अहं ब्रह्मास्मि  

(अरुण साथी )

वह देवता पुत्र था 
उसने तपस्या की 
घनघोर 
उसने सारी विद्या सीखी 


उसे वरदान मिला 
अमरत्व का
उसने स्वर्ण महल बसाया 
स्वर्ग में सीढ़ी लगाने की
घोषणा की 

उसने मन की गति से
पुष्पक विमान उड़ाए

उसने युग जीता 
उसने देवता को 
दास बना लिया 
उसने काल को भी 
बस में कर लिया 
फिर उसने घोषणा 

अहं ब्रह्मास्मि

और तब वह रावण हो गया


शुक्रवार, 29 मार्च 2024

प्रेम की कविता


#प्रेम की #कविता
(अरुण साथी)
वह रोज मिल जाती है
कभी बीच सड़क
कभी गली में
कभी छत पे
कभी झरोखे से

कभी कभी
मिल जाती है
सपनों में भी

नज़रें मिलते ही
वह आहिस्ते से
मुस्कराती है

फिर नजरे झुका
चली जाती है
बस...


शुक्रवार, 1 मार्च 2024

आदमी, कुत्ता और कचरा

आदमी, कुत्ता और कचरा
कचरे का बड़ा ढेर
कचरे के ढेर को 
आदमी ने बड़े ही जतन से 
संग्रहित किया 
बरसों की मेहनत 
एक-एक कचरा से 
खड़ा किया साम्राज्य 
कचरे का 

और घोषित किया 
स्वयं को राजा 

हम ऐसे आदमी को 
विक्षिप्त कहते हैं 

और आश्चर्य तो यह कि 
वह भी हमें यही समझता है...

शेखपुरा रेलवे स्टेशन के पास इस तस्वीर को कैद करने के बाद मेरे शब्द..

शनिवार, 20 जनवरी 2024

राम ने कहा

राम ने कहा

सुनो वत्स

मुझे मर्यादा पुरुषोत्तम 

जानते है सब 

मुझे मर्यादा में ही रहने दो


बाल्मिकी और तुलसी

की भावनाओं के साथ ही मुझे 

जन जन के जीवन में बहने दो


मर्यादा टूटी तो 

मुझे कौन पुरुषोत्तम मानेगा


फिर 

रावण को भी गुणी मान

कौन अपने भ्राता

को उसके चरणों  में भेज

जीवन का सूत्र  जानेगा...


मुझे दिव्य दिगंबर

बना दोगे तो

सबरी के जूठे 

बेर कौन खायेगा


केवट की नाव चढ़

कौन उस पार जायेगा


फिर माता अहिल्या

शिला ही रहेगी

इस तरह फिर

कौन उद्धारक आयेगा


मुझे तो जटायु

हनुमान, बानर

के साथ ही रहने दो


स्वर्ण महलों के मुझे बिठाओगे

तो भला  रावण वह,

जिसकी सोने की लंका थी

किसी को कैसे बताओगे


रावण वह

जिसने साधु के भेष

में सीता हरण किया

किसी को कैसे समझाओगे


सुनो वत्स..सुन लो..