सोमवार, 31 अक्टूबर 2011
बुधवार, 19 अक्टूबर 2011
मंगलवार, 11 अक्टूबर 2011
शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011
कालकंट
बचपन से बुढ़ापे तक,
गांव की गलियों से
महानगरों की अट्टालिकाओं तक,
जीवन के आदि से अंत तक..
रोज-रोज
क्षण-क्षण
विषवमन करते हैं वे
और मैं
अभ्यस्त हो गया हूं
कहीं कोई जाति और धर्म के नाम पर,
कहीं कोई मजूर जानकर,
उगलते रहते हैं
सांधातिक विष।
सदियों से पीते हुए विष को,
काला पड़ गया देह,
और एक प्याला पीकर
नीलकंठ-हो गए भगवान
मैं आज भी कालकंट के कालकंट ही रहा।
रविवार, 2 अक्टूबर 2011
शब्दों की चुहलबाजी (क्षणिकाऐं)
1
गांधी जी से लेकर
इबादत की टोपी तक,
सबकुछ बांट देगें।
राजनीति के चतुरसुजान,
खून को भी सेकुलर कह छांट देगें!
2
मेरी आदतों का वे बुरा मान गए हैं,
मंदिर, मस्जिद भी जाता हूं, वे जान गए हैं।
3
चोर चोर मौसेरे भाई।
भाजपा ने उक्ती को चरितार्थ किया,
मंहगाई पर वोटिंग में आम आदमी को छोड़,
संसद में कांग्रेस का साथ दिया।
4
बाबा जी कहते थे
सर्वशक्तिमान है हम,
कांग्रेस के एक ही फटके में,
न खुदा मिला, न विशाले सनम...।
5
हाइटेक युग में महोदय
कथित रथ की सवारी करेगें,
जनता को भ्रमाने का
फिर से एक स्वांग धरेगें।
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