अहं ब्रह्मास्मि
(अरुण साथी )
वह देवता पुत्र था
उसने तपस्या की
घनघोर
उसने सारी विद्या सीखी
उसे वरदान मिला
अमरत्व का
उसने स्वर्ण महल बसाया
स्वर्ग में सीढ़ी लगाने की
घोषणा की
उसने मन की गति से
पुष्पक विमान उड़ाए
उसने युग जीता
उसने देवता को
दास बना लिया
उसने काल को भी
बस में कर लिया
फिर उसने घोषणा
अहं ब्रह्मास्मि
और तब वह रावण हो गया