बुधवार, 25 अप्रैल 2012
सोमवार, 16 अप्रैल 2012
लबादा
लबादा ओढ़ कर जीते हुए
सबकुछ हरा हरा दिखता है
बिल्कुल
सावन में अंधें हुए
गदहे की तरह।
लबादे को टांग कर अलगनी पर
जब निकलोगे बनकर
आमआदमी
तब मिलेगी जिंदगी
कहीं स्याह
कहीं सफेद
कहीं लाल
और कहीं कहीं
बेरंग
रविवार, 15 अप्रैल 2012
शुन्य का सिद्धांत
जिंदगी गणित की किताब है।
दशमलव, सम और विभाजन
अध्यायों की तरह
जटिलताओं के साथ
सामने आ जाती है
अचानक...
गुणनफल और भागफल
की अतिमहत्वाकांक्षा का
गणितीय सुत्र हर किसी के पास
होता भी तो नहीं....
न ही हर कोई जानता है
वर्गमूल का सिद्धांत,
कुछ सम की परिभाषा
को ही मानते है
और कुछ का जीवन
विखण्डन के सिद्धांत
को प्रतिपादित करता है..
पर साधू होना सर्वश्रेष्ठ
गणितज्ञ होने जैसा है
जिन्हें शुन्य का सिद्धान्त पता होता है...
शनिवार, 7 अप्रैल 2012
गजल
न हिंदू लगता है, न मुस्लमान लगता है।
अजीब शय है वह, इंसान लगता है।।
यूं तो फरीस्ते ही सभी है इस कब्रिस्तान में।
अदब से जो शख्स शैतान लगता है।।
रोज हंसता है वो धोकर अपने दामन से लहू।
लूटा हो जैसे गैरों का अरमान लगता है।।
खुदा भी वही है, खुदी भी उसी के पास।
बोल दो, वह बड़ा ही बदगुमान लगता है।।
बुधवार, 4 अप्रैल 2012
तुम आदमी हो या राक्षस..
उनकी बात क्यों करते हो
जिन्होंने
रंग-रोगन किए महलों
और
चमकते कंगूरों से
सजा लिया है अपना बाह्य...।
उनको भी क्यों सराहते हो
जिन्होंने
अनीति-अधर्म की साझेदारी से
घोषित कर दिया है
खुद को प्रजापति...।
और तुम्हारा
सीना क्यों फूल जाता है
उनका साथ पाकर
जिनकी
रावण सरीखी विद्वता
स्वर्ण महलों में रहती है
जबाब दो मुझे
तुम आदमी हो या राक्षस..
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