गुरुवार, 29 सितंबर 2016

परिवार

परिवार
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माँ-बाबु जी का
गलतियों पे डाँटना,
उदासी का कारण पूछ
दुःख बाँटना है।
अच्छा लगता है..

2
दोपहर को खाने का
मिसकॉल आना,
देर रात  घर पहुँचने पे
बीबी का रूठ जाना।
अच्छा लगता है..

3
बिना वजह आप किसी से
भी क्यों उलझते है,
दुनिया की छोड़ अपनी
फ़िक्र करो; भाई का समझाना।
अच्छा लगता है...

4
बेटा का खिलौने
की जिद्द नहीं पकड़ना
टूटे जूते को देख टोकने पर,
अभी चलेगा पापा कहना।
अच्छा लगता है..

5
मुंहझौंसी, जरलाही कहके
बीबी को चिढाना,
मायके की शिकायत पे
उसका मुंह फूलना।
अच्छा लगता है..

6
बेटी की सहनशक्ति
गाहे-बेगाहे सामने आना,
अभावों को छुपा कर
उसका मुस्कुराना।।
अच्छा लगता है...

मंगलवार, 27 सितंबर 2016

दासी लोकतंत्र

दासी लोकतंत्र
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साथी उवाच

"क्यों
जनतंत्र में
मालिक जनता
भूखी और प्यासी है?

राजा के घर क्रंदन
क्यों है?

क्यों मुख पे
छाई उदासी है?"

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बकलोल उवाच

"क्योंकि
लोकतंत्र तो
वंशवादी,
जातिवादी,
धर्मवादी,
नेताओं के
चरणों की दासी है।।।
(शपथ ग्रहण के बाद उत्तरप्रदेश के मुखिया मुलायम सिंह के पैरों में लटके मंत्री गायत्री प्रजापति प्रसंग पे)

शनिवार, 17 सितंबर 2016

भूख और माँ

भूख और माँ

(सोशल मीडिया पे वायरल इस तस्वीर को देखकर साथी के शब्द.. निःशब्द..)
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जिंदगी है
मौत है
और है
मौत से भी
भयावह
क्रूर
बर्बर
भूख..

इसीलिए तो
भूख और माँ
की लड़ाई में
भूख जीत जाता है
माँ हार जाती है..
अक्सर..

बुधवार, 14 सितंबर 2016

भक्त

"भक्त"
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"अच्छे दिन"
और
"काला धन"
को जुमला
कहे जाने पर भी
जो आसक्त रहते है,

हे तात
कली काल में
उसे ही
भक्त कहते है..
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#साथी के #बकलोल वचन



रविवार, 11 सितंबर 2016

प्रहसन

यह एक प्रहसन है
लोकतंत्र का प्रहसन
यहाँ
लिखी गयी पटकथा पे
अभिनय करते है
लोग

तभी तो
वही लोग
जो कल तक
रावण को मानते थे
राक्षस,
आज अचानक
भगवान् मानने लगे..!

वही लोग
जिनके लिए पाप था
सीता का
अपहरण
द्रोपदी का
चीरहरण
लाक्षागृह दहन
दुर्योधन का
अत्याचार,
आज इसे ईश्वर की
इच्छा मानने लगे..

वही कृष्ण
जाने कैसे
कुरुक्षेत्र में
आकर
कहने लगे

"हे तात
लाभ-हानि
जीवन-मरण
यश-अपयश
सब कुछ विधि हाथ..

गुरुवार, 8 सितंबर 2016

तूती की आवाज



कातिल को कातिल कहो, रवायत नहीं है।

फ़क़त मुर्दों से ज़माने को शिकायत नहीं है!!

मुर्दों के शहर में रहकर भी शोर क्यों करते हो,
यह कब्र में सोये हुए बंदों से अदावत नहीं है?


बस्ती है यह चोरों का, जयकारा उसका होगा,
सच कहना क्या इस दौर में कयामत नहीं है?


जब नक्कारखाने में मुनादी है खामोश रहने की,
वैसे में तेरा शोर, "तूती" बनने की कवायद नहीं है?