रविवार, 22 सितंबर 2013

रामधारी सिंह "दिनकर" को जन्म दिन पर नमन....

दिल्ली(कविता)  रामधारी सिंह "दिनकर"


यह कैसी चांदनी अम के मलिन तमिर की इस गगन में,
कूक रही क्यों नियति व्यंग से इस गोधूलि-लगन में?

मरघट में तू साज रही दिल्ली कैसे श्रृंगार?
यह बहार का स्वांग अरी इस उजड़े चमन में!

इस उजाड़ निर्जन खंडहर में, छिन्न-भिन्न उजड़े इस घर में
तुझे रूप सजाने की सूझी,इस सत्यानाश प्रहर में!

डाल-डाल पर छेड़ रही कोयल मर्सिया - तराना,
और तुझे सूझा इस दम ही उत्सव हाय, मनाना.

हम धोते हैं घाव इधर सतलज के शीतल जल से,
उधर तुझे भाता है इन पर नमक हाय, छिड़कना!

महल कहां बस, हमें सहारा,केवल फूस-फास, तॄणदल का;
अन्न नहीं, अवलम्ब प्राण का, गम, आँसू या गंगाजल का.

बुधवार, 11 सितंबर 2013

राम की जगह रोटी दे दो..

1
राम की जगह रोटी दे दो, कोई भूखे का भगवान् नहीं होता.
रहीम के बंदों बगैर मुसलम इमां, कोई मुसलमान नहीं होता..

2
पांचों वक्त नमाज पढ़ों या जाओ चारो धाम।

लहू सना हाथ देख रो देगें, अल्ला हो या राम।।


अरुण साथी

शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

लैंपपोस्ट

तुफानों की घिरी जिंदगी
डूबती-उतरती रहती है..

कभी सतह पर
तलाशती है कोई
तिनका..

कभी
तलाशती है उसे
जो खोया ही नहीं...

कभी भरकर
मुठ्ठी में रेत
मचल जाती है...

कभी तलाशती है
स्याह
रातों की
सलवटें..

तभी दूर कहीं एक
लैंपपोस्ट
कहती हो जैसे
तुम भी क्यों ने बन जाते हो
मेरी तरह
.
थरथराती हुई सी सही
मेरी रौशनी किसी को
राह तो दिखाती है..
किसी को किनारा तो
बताती है...