शनिवार, 24 दिसंबर 2011

मैं आत्म हत्या नहीं करना चाहता हूं?



मरना कौन चाहता है?
किसे अच्छा लगता है
जीना, बनकर एक लाश।

करने से पहले आत्महत्या,
करना पड़ता है संधर्ष,
खुद से।

पर पाने से पहले
रेशमी दुनिया,
खौलते पानी में डाल देते है
कोकुन में बंद जमीर को।

महत्वाकांक्षा
परस्थिति
समय और
काल
के तर्क जाल में उलझ
आदमी
मारकर जमीर को
कर लेता है आत्महत्या,
और फिर
अपने ही शव को
कंधे पर उठाये
जीता रहता है
ता उम्र....


फोटो - साभार- गूगल....

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

मुझे बहुत गुस्सा आता है.....


मैं बेवजह उलझ पड़ता हूं सबसे
अपने-पराये की पहचान भी नहीं है
अक्सर अपने देते रहते है यह सलाह
कहते हैं छोटी-छोटी बातों को इगनोर करो...
और मैं
‘‘मजा मारे मकईया के खेत में’’
या फिर
‘‘जरा सा जिंस ढीला करो’’
बजते
सुन भड़क जाता हूं
जब वह किसी यात्री बस पर
या फिर
दोस्त के बहन की शादी में
बैठी मां-बहनों को शर्माते हुए देखता हूं।

बगल में बैठ कोई चिलम धराये
या सिगरेट जलाए लोगों पर भी
मैं भड़क जाता हूं।

मैं तब भी भड़क जाता हूं
जब किसी बृद्धा से पेंशन निकालने में
लिया जाता है नजराना
जो होता है उनके लिए
‘‘मात्र दस रूपया...’’

दबे कुचलों की आवाज बनने
चला जाता हूं मीलों दूर
गंदी वस्ती में
जहां मुझे भी लोग उसी तरह घूरते है
जैसे मैं भी आया हूं वोट मांगने
और वर्षो से ठगे जाने वाले लोग
न उम्मीदी में ही सही
सुनाने लगते है अपना दुखड़ा
और कीबोर्ड पर खट खट कर
उनकी आवाज को बना देता हूं आग
तब भी लोग मुझे सलाह देते हैं
तोरा की काम हो?
तोरा की मिलो हो?
की फायदा?

पता नहीं
पर विसमताओं और
विसंगतियों को देख
मुझे गुस्सा बहुत आता है।

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

सुबह की कुछ क्षणिकाऐं


1
सत्ता और विपक्ष।
उनके रूठने की अदा सुभानअल्ला,
उनके मनाने की अदा माशाअल्ला।
हम भी है वाकिफ इस याराने से,
अब कैसे बचे देश इस शातिराने से।

2
मीडिया।
अब तो चौथेखंभे के गिरने का सवाल उठता है,
जिन सवालों के लिए थे वो, उसपर सवाल उठता है।
हर सवालों के सवाल से हम वाकिफ है,
ना खुदा तुम नहीं, तुमको भी खुदा हाफीज है।।

3
नैतिकता
नहीं आसां है यह करना,
है मुश्किल बड़ा खुद से लड़ना।
मेरी भी आदत है कि मैं चुप रहता हूं,
जो भी हो, आदत है इसी के साथ रहता हूं।।


4
हौसला, प्यास से बड़ी होती है,
मंजिल उसी के तलाश में खड़ी होती है।

5
जाग उठा है देश, बस आवाज बुलंद रखिए,
अन्ना अन्ना अन्ना,
बस यही साज-ओ-छंद रखिए..



गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

औरत केवल औरत नहीं होती..



औरत केवल औरत नहीं होती..

वे होती एक मां
जिनकी आंचल में पलती है 
जिंदगी।

वे होती है एक पत्नी 
जिनकी आंचल में पलता है
प्यार।

वे होती है बहन-बेटी 
जिससे आंगन मे पलता है
दुलार.

औरत केवल औरत नहीं होती
वे है तो होता ईश्वर के होने का एहसास...