मन की बात
(अपने 50वें जन्म दिन पर (कल) लिखी कविता)
आज तक
जीवन को सार्थक
कर न पाया
नैतिकता की
कसौटी पर
जिसे खरा पाया
उसी के साथ
पग बढ़ाया
लड़खड़ाया
गिरा, संभला
उठा ,चला
जीवन भर
खुद को
यात्री ही पाया
बहुत लोगों
से मिला
बहुत कम
से जुड़ पाया
जिससे जुड़ा
उसका अपनत्व
भाया
इस अकिंचन को
सबने अपनाया
इसी यात्रा में
विषधर
आस्तीन में समाया
कुछ ने विष वमन की
कुछ का विष पचाया
कुछ प्रपंची ने
करने को वध
चक्रव्यूह रचाया
बेसहारा हो
सातवें चक्र में
अभिमन्यु की तरह
खेत आया
चरैवेति चरैवेति
जीवन का मंत्र बनाया
सब कुछ के बाद भी
जीवन को सार्थक
कर न पाया....
App aise hi apne bicharo ko likhte rahe..or agee badhte rahe..bhagwan apko lambhi umr de. App ham logo ke prerna shrot hai
जवाब देंहटाएंaabhar apka
हटाएंaabhar apka
हटाएंयात्रा जारी रहे | सांप भी चलते रहें | आस्तीन सलामत रहे | शुभकामनाएं मन की बात कर देने के लिए |
जवाब देंहटाएंआभार अपका। प्रेरणा मिली। यात्रा जारी रहेगी
हटाएंआत्ममंथन महत्वपूर्ण है जीवन के हर.पड़ाव के लिए।
जवाब देंहटाएंप्रणाम सर
सादर
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ जून २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
पांच में से एक स्थान देने लिए के अभार, आत्ममंथन जारी है, विचारों की कमल चलेगी आगे भी
हटाएं50वें जन्मदिन की बधाई
जवाब देंहटाएंaabhar
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंदेर से ही सही जन्मदिन की शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंसार्थक आत्ममंथन ।
हृदय से धन्यवाद
हटाएंवाह! बहुत खूब! जन्म दिन की ढेरों शुभकामनाएँ💐
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया जी आपका
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबधाई एवं शुभकामनाएँ।
आभार आपका
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