बाढ, सूखा, जल और नदी नियमन पर देश्व्यापी चिंतन और योजनाओं की आवश्यकता है। ऐसी समस्याओं के मानवीय पक्ष को भी ध्यान में रखा जाना चाहिये।
खेदजनक है ये सब । स्वार्थ में डूबे सत्ताधारी । कौन सोचता है प्रजा की आजकल। गिला न हो तो क्या हो।
गीला जिंदगी से नहीं ... सत्ता धारियों से है ... जो कुछ नहीं करते ...
बाढ, सूखा, जल और नदी नियमन पर देश्व्यापी चिंतन और योजनाओं की आवश्यकता है। ऐसी समस्याओं के मानवीय पक्ष को भी ध्यान में रखा जाना चाहिये।
जवाब देंहटाएंखेदजनक है ये सब । स्वार्थ में डूबे सत्ताधारी । कौन सोचता है प्रजा की आजकल। गिला न हो तो क्या हो।
जवाब देंहटाएंगीला जिंदगी से नहीं ... सत्ता धारियों से है ... जो कुछ नहीं करते ...
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