शनिवार, 24 दिसंबर 2011

मैं आत्म हत्या नहीं करना चाहता हूं?



मरना कौन चाहता है?
किसे अच्छा लगता है
जीना, बनकर एक लाश।

करने से पहले आत्महत्या,
करना पड़ता है संधर्ष,
खुद से।

पर पाने से पहले
रेशमी दुनिया,
खौलते पानी में डाल देते है
कोकुन में बंद जमीर को।

महत्वाकांक्षा
परस्थिति
समय और
काल
के तर्क जाल में उलझ
आदमी
मारकर जमीर को
कर लेता है आत्महत्या,
और फिर
अपने ही शव को
कंधे पर उठाये
जीता रहता है
ता उम्र....


फोटो - साभार- गूगल....

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

मुझे बहुत गुस्सा आता है.....


मैं बेवजह उलझ पड़ता हूं सबसे
अपने-पराये की पहचान भी नहीं है
अक्सर अपने देते रहते है यह सलाह
कहते हैं छोटी-छोटी बातों को इगनोर करो...
और मैं
‘‘मजा मारे मकईया के खेत में’’
या फिर
‘‘जरा सा जिंस ढीला करो’’
बजते
सुन भड़क जाता हूं
जब वह किसी यात्री बस पर
या फिर
दोस्त के बहन की शादी में
बैठी मां-बहनों को शर्माते हुए देखता हूं।

बगल में बैठ कोई चिलम धराये
या सिगरेट जलाए लोगों पर भी
मैं भड़क जाता हूं।

मैं तब भी भड़क जाता हूं
जब किसी बृद्धा से पेंशन निकालने में
लिया जाता है नजराना
जो होता है उनके लिए
‘‘मात्र दस रूपया...’’

दबे कुचलों की आवाज बनने
चला जाता हूं मीलों दूर
गंदी वस्ती में
जहां मुझे भी लोग उसी तरह घूरते है
जैसे मैं भी आया हूं वोट मांगने
और वर्षो से ठगे जाने वाले लोग
न उम्मीदी में ही सही
सुनाने लगते है अपना दुखड़ा
और कीबोर्ड पर खट खट कर
उनकी आवाज को बना देता हूं आग
तब भी लोग मुझे सलाह देते हैं
तोरा की काम हो?
तोरा की मिलो हो?
की फायदा?

पता नहीं
पर विसमताओं और
विसंगतियों को देख
मुझे गुस्सा बहुत आता है।

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

सुबह की कुछ क्षणिकाऐं


1
सत्ता और विपक्ष।
उनके रूठने की अदा सुभानअल्ला,
उनके मनाने की अदा माशाअल्ला।
हम भी है वाकिफ इस याराने से,
अब कैसे बचे देश इस शातिराने से।

2
मीडिया।
अब तो चौथेखंभे के गिरने का सवाल उठता है,
जिन सवालों के लिए थे वो, उसपर सवाल उठता है।
हर सवालों के सवाल से हम वाकिफ है,
ना खुदा तुम नहीं, तुमको भी खुदा हाफीज है।।

3
नैतिकता
नहीं आसां है यह करना,
है मुश्किल बड़ा खुद से लड़ना।
मेरी भी आदत है कि मैं चुप रहता हूं,
जो भी हो, आदत है इसी के साथ रहता हूं।।


4
हौसला, प्यास से बड़ी होती है,
मंजिल उसी के तलाश में खड़ी होती है।

5
जाग उठा है देश, बस आवाज बुलंद रखिए,
अन्ना अन्ना अन्ना,
बस यही साज-ओ-छंद रखिए..



गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

औरत केवल औरत नहीं होती..



औरत केवल औरत नहीं होती..

वे होती एक मां
जिनकी आंचल में पलती है 
जिंदगी।

वे होती है एक पत्नी 
जिनकी आंचल में पलता है
प्यार।

वे होती है बहन-बेटी 
जिससे आंगन मे पलता है
दुलार.

औरत केवल औरत नहीं होती
वे है तो होता ईश्वर के होने का एहसास...

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

अन्तराल















अन्तराल..
दर्द और हंसी के बीच..

जो जुड़ा था
उसके टूटने से पहले,
होता है एक अन्तराल।

टूटना नये का आगमन है..
पूष की रात
और फिर
वसंत,
बीच का अन्तराल
पतझड!

ढूंठ था जहां कभी
वहां कलरव करते है विहग
वसंत
पतझड़
और अंतराल
जीवन का सबसे बड़ा सवाल....

सोमवार, 31 अक्तूबर 2011

छठ का नजारा

खरना का प्रसाद बनाती मां





तेतारपुर गांव स्थित मालती पोखर का सुर्य मंदिर- जिसें एक महिला के द्वारा स्थापित किया गया एवं तलाब की खुदाई भी की गई।



सूप बनाता दलित परिवार और खरीदती छठवर्ती





फलों की सजी दुकान पर फल बेचता मुस्लिम परिवार




बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

खुबसूरत मकड़ी














खुबसूरत मकड़ी की यह तस्वीर अपने गांव के बगीचे से खींची है। इस मकड़ी का आकार 9 इंच है और इसके जाले की आकार लगभग तीन फीट।

मैंने तो इस तरह की मकड़ी नहीं देखी है शायद कोई जानकार बता सकें कि यह किस प्रजाती की मकड़ी है या फिर यह अद्भुत है?

मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011

पानी रे पानी तेरा रंग कैसा?




शेखपुरा जिले का घाटकोसुम्भ प्रखंड के तीन दर्जन से अधिक गांव कई माह तक पानी में डूबा रहता है और इसमें भी जिंदगी सूरज की किरणों की सुनहली परत ओढ़ कर कुछ यूं निकलती है...

सोचिंए?
कई सुविधाओं के बाद भी हमें जिन्दगी से इतना गिला क्यूं है?

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

कालकंट



















बचपन से बुढ़ापे तक,
गांव की गलियों से
महानगरों की अट्टालिकाओं तक,
जीवन के आदि से अंत तक..
रोज-रोज
क्षण-क्षण
विषवमन करते हैं वे
और मैं
अभ्यस्त हो गया हूं
विष पीने का।

कहीं कोई जाति और धर्म के नाम पर,
कहीं कोई मजूर जानकर,
उगलते रहते हैं
सांधातिक विष।

सदियों से पीते हुए विष को,
काला पड़ गया देह,

और एक प्याला पीकर
नीलकंठ-हो गए भगवान

मैं आज भी कालकंट के कालकंट ही रहा।

रविवार, 2 अक्तूबर 2011

शब्दों की चुहलबाजी (क्षणिकाऐं)



1
गांधी जी से लेकर
इबादत की टोपी तक,
सबकुछ बांट देगें।
राजनीति के चतुरसुजान,
खून को भी सेकुलर कह छांट देगें!



2
मेरी आदतों का वे बुरा मान गए हैं,
मंदिर, मस्जिद भी जाता हूं, वे जान गए हैं।

3
चोर चोर मौसेरे भाई।
भाजपा ने उक्ती को चरितार्थ किया,
मंहगाई पर वोटिंग में आम आदमी को छोड़,
संसद में कांग्रेस का साथ दिया।

4
बाबा जी कहते थे
सर्वशक्तिमान है हम,
कांग्रेस के एक ही फटके में,
न खुदा मिला, न विशाले सनम...।

5
हाइटेक युग में महोदय
कथित रथ की सवारी करेगें,
जनता को भ्रमाने का
फिर से एक स्वांग धरेगें।

मंगलवार, 13 सितंबर 2011

दोस्ती.



कभी कभी मैं भी झेंप जाता हूं,
जब, मित्र के पत्तल से
उठा कर मिठाई
अपने पत्तल में डाल लेता हूं
और लोग चौक कर अचरज से 
मेरी ओर देखने लगते हैं।

तब, जब मित्र अपने हिस्से की 
आधी से अधिक चाय
मेरे कप में उड़ेल देते हैं

और तब भी,
जब कभी कभी
मित्र संकोचवश 
खाने लगते है मिठाई
और मैं छीन लेता हूँ 
झप्पटा मार कर...

लोग मेरी अशिष्टता पर हंसते हैं।

परवाह नहीं, लोग क्या सोंचते होगें...

पर एक डायबिटिक मित्र की मिठासा छीनना
मुझे सौ जन्मों की खुशी दे जाती है....

रविवार, 14 अगस्त 2011

अन्ना तुम संधर्ष करो हम तुम्हारे साथ है। कस्बाई इलाकों मे गुंजी अन्ना की आवाज।



शेखपुरा
अन्ना ने 16 अगस्त से शुरू होने वाले अनशन को देश की दूसरी आजादी का नाम दिया है और इसी दूसरी आजादी में अन्ना के साथ देने का शंखनाद की गूंज दिखी 15 अगस्त को। छोटे छोटे स्कूली बच्चों ने भ्रष्टाचार भारत छोड़ों के नारे के साथ अन्ना का साथ देने के लिए अपनी आवाज बुलंद। बच्चों ने अपने हाथों से कॉमनबेल्थ धोटाले का कार्टून बना कर भ्रष्टाचार पर प्रहार किया और साथ ही तिरंगा झंडे को हाथों में लहरा कर भ्रष्टाचार भारत छोड़ों का नारा बुलंद किया। 

छोटे छोटे नन्हें मुन्हें बच्चों ने आवाज बुलंद करते हुए अन्ना को संधर्ष करने का आहवान कर रहे थे तो अन्ना के आंदोलन का समर्थन कस्बाई इलाके होने से इस आंदोलन की सार्थकता को समझा जा सकता है।

यह है दर्द में डूबी हुई हंसी।



यह तस्वीर मैंने अपने गांव के मुहसर टोली से खींची है,
इस बच्चे को देख कर बरबस ही मुंह से निकल गया...

मैंने भी माथे पर लगाया है तिरंगा,
भले ही हूं मैं भूखा नंगा।
मेरे चेहरे पर भी देख
लो आजादी की खुशी,
देखो औ देश के रहनुमाओं
यह है दर्द में डूबी हुई हंसी।

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

इवादत के फूल




















मैंने तो फूल लाए थे इबादत के लिए

उसको भी लहू में डुबो गया कोई...



पैगामे मोहब्बत की हवा आज भी चलती तो है

रास्ते में जहर उसमें बुझो गया कोई...



कातिल है उनकी नजर बहुत साथी

करीब आने पर, मुझको बता गया कोई.....



कागज पे लिखे कुछ हरफ थे महज उनके लिए

बजूदे राख हुए तो लहू से लिखने की बात बता गया कोई...



अब तो, बात अमन की हो तो मुझको बुरा लगता है

है यह सियासत भर, कह कर मुझको सता गया कोई...



हिना तो हथेली पर सजाने के लिए होती है

इम्तहां ए मोहब्बत में माथे पे सजा गया कोई....

गुरुवार, 28 जुलाई 2011

जब भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा तब क्या बचेगा?

एक मित्र ने फेसबुक पर लिखा

जब भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा तब क्या बचेगा?
और मैने जबाब दिया.
तब रहेगी-
गरीब-गुरबों की खुशी

दबे-कुचलों की हंसी

तब हंसेगा अपना भारत

तब बसेगा सच्चा भारत

तब खिलेगें खलिहानों में फूल

तब मिलेगे झोपड़ी में गुल

तब कहीं कोई नहीं कराहेगा

दुनिया अपने भारत को सराहेगा..

बुधवार, 27 जुलाई 2011

अब कहां वो बात ?

कितना शकून था 
जब दो-एक कमरे का घर था 
और थी एक मुठ्ठी  
अपनी खुशी  
अपना गम  
अपनों का रूठना-रिझाना..  
उसी छप्पर के नीचे  
लड़ते झगड़ते  
गीत गाती थी 
जिंदगी  
रून-झुन रून-झुन...भादो में मेघ का टपक कर
थकी नींद से जगाना,  
मेरा झुंझलाना  
टपकती हुई मेध के नीचे  
तुम्हारा कटोरा लगाना...  
तब सब कुछ था अपना सा

प्रियतम, 
अब है कहां वह बात 
मिलन करा दे,
डराती धमकाती 
अब है कहां वह रात..

इस मकान में, है बहुत कुछ 
पर अपना सब कुछ खो गया है!  
गुंजती है 
वह तो तीसरी मंजिल पर जा कर सो गया है..?

मंगलवार, 12 जुलाई 2011

जलती जिंदगी


ठीक सूरज के छुपने से पहले
हाथ में लग्गी ले, आया एक सौतार का बेटा
महुआ की दूर भागती टहनियों से कहा
‘‘तुम मेरी भूख से ज्यादा दूर नहीं भाग सकते’’
फिर वह बन गया बंदर
कभी इस डाली
कभी उस डाली
भूख से लड़ते हुए
उसने वामन सा नाप दिया
पूरा ब्रहमांड
अपने जीवन को लगाकर दांव पर
उसने पाया
एक गठरी सूखी लकड़ी
घर की ओर जाते
वह गुनगुना रहा है!
वह खुश है
आज फिर वह भूखा नहीं सोएगा......

सोमवार, 27 जून 2011

जी रहे है हम मुर्दों की तरह....


जी रहे है हम मुर्दों की तरह....

मरा हुआ सांप देख हिम्मत वढ़ जाती है,
पहले उसका मुंह थुरते है, जहां होता है विषैला दांत।
और
चाहते है पक्का करना उसकी मृत्यु
जीवित होने के सभी संभावनाओं की हद तक
पक्का....

लगाते है दो चार इंटा और उपर से...

है तो यह विषधर
पर उन्हें यकीन है यह मरा हुआ है।

तभी तो
रामलीला हो
या जन्तर मंतर

घर का चुल्हा उपास हो
या
लगी हो जोर की प्यास
हम उफ नहीं करते....


तभी तो
इसी की पूंछ पकड़
डराते है
अन्ना
और
रामदेव को
भागो
भागो...

न कोई हलचल
न कोई स्पंदन
जी रहे है हम
मुर्दों की तरह....

शुक्रवार, 17 जून 2011

गांधी जी के तीन बंदर


अब तो सत्याग्रह भी जुर्म हो गया है देश में?
राजगद्दी पर राजा बैठा है बंदर के भेष में.।

मंत्री से संत्री तक सब बोले हिटलरवाणी,
बाबा और संतो पर चढ़ दौड़ती है सरकारी जवानी।
बड़ा मजा आता है इनको करने क्लेश में....,
अब तो सत्याग्रह भी जुर्म हो गया है देश में?

गरीबी मिटाने का दावा इनका हो गया है पूरा,
घरती के बेटे का सपना धरा रह गया है अधूरा।
चार आना पुंजी है सौ लोगों की जेब में,
अब तो सत्याग्रह भी जुर्म हो गया है देश में?

गांधी जी के तीनों बंदर दिख जाएगें दिल्ली में,
लोकतंत्र को उड़ा रहें है हंस कर ये खिल्ली में।
सत्याग्रह,
न देखो,
न बोलो,
न सुनो,
राजा का फरमान टंग गया है सभी प्रदेश में
अब तो सत्याग्रह भी जुर्म हो गया है देश में?

शुक्रवार, 3 जून 2011

जीवन की रेल....


अहले सुबह अलसाये
जब यात्री  अपने वर्थ से
नीचे उतरे तो बिखड़ी गंदगी को देख
नाक मुंह  सिंकोड़ने लगे..

गंदा तो सभी ने किया पर साफ कौन करेगा?

फिर सीख लेते हैं इसी तरह जीना
गंदगी के साथ....

तभी भावशुन्य चेहरे के साथ आता है
वह आदमी
चिथड़ों में लिपटा शरीर
भनभनाती मख्खियां..
और बुहारने लगता है..

तभी एक सज्जन पिच्च से पान की पिरकी
फेंकते हुए कहते हैं
‘‘पागल’’?

गंदगी को फेंक लौटा
वह आदमी..
भावशुन्य चेहरे के साथ
फैला कर  अपना हाथ
खामोशी से देखता रहा
सबको बारी बारी

तभी मैं डर गया
लगा जैसे
वह कह रहा हो
कितने गंदे लोग
कितना गंदा समाज
कितने पागल एक साथ.....

बुधवार, 25 मई 2011

आतंकियों के नाम आमंत्रण।




आईएसआई ने रची साजिश
हेडली के इस बयान को 
अखबारों ने प्रमुखता से खबर लगाया
साथ ही
कसाब की सुरक्षा पर 10 करोड़
का किस्सा भी बॉक्स में चिपकाया!

इस गड़बड़ झाले ने मेरा सिर चकराया?

तब क्या
  हमऐसा ही करते रहेगेें!
बीटी स्टेशन और ताज में
इंडियन मरते रहेगें!

तब
एक नेता जी ने मुझे समझाया..
भौया जी यह पोल-टिक्स है..

इसलिए हम
ऐसा ही करेगें
कसाब पर खर्च कर
आतंकियों को आमंत्रित करेगें.....

सोमवार, 23 मई 2011

मां का नाम क्या है?


















बचपन से ही
मां को लोग
पुकारते आ रहे हैं
‘‘रमचनदरपुरवली’’

या
सहदेवा के ‘‘कन्याय’’
बाबूजी जी भी पुकारते
बबलुआ के ‘‘माय’’
आज दादा जी ने जोर से पुकारा
अरे बबलुआ
देखा मां दौड़ी जा रही है।

उधेड़बुन में मैं सोंचता
आखिर इस सब में
मां का नाम क्या है?

जब मां गई थी ‘‘नैहर’’
तो पहली बार नानी ने पुकारा
‘‘कहां जाय छहीं शांति’’
फिर कई ने मां को इसी नाम से पुकारा..

फिर मैं
उधेड़बुन में सोचता रहा
आखिर इस सब में
मां का नाम क्या है?

कई सालों से मां नैहर नहीं गई है
अब मां को शांति देवी पुकारता है
तो मां टुकुर टुकुर उसका मुंह ताकती है
शायद
मेरी तरह अब
मां भी उधेड़बुन है
आखिर इस सब में
उसका का नाम क्या है?

बुधवार, 18 मई 2011

गुनहगार-(गजल)



यह दुनिया क्या, इसके सितम क्या,
जितने दुनियादार होगे, उतने सितम का एहसास होगा।

पल भर में जहां बात बदल जाती है,
ऐसी दुनिया में, है कौन सितमगर किसे याद होगा।

वह जिसने कहा था जान देगें तेरे खातीर,
कब सोंचा था, वही मेरी जां का तलबगार होगा।

बात गुनाहों की कभी अब न करो,
आइने में अपना ही चेहरा शर्मसार होगा।

आसमां की बुलंदी पर जब देखा सबने,
किसने सोंचा था, बिना पंख के परवाज होगा।

सोमवार, 16 मई 2011

अपनी अपनी सुबह

सुबह सबका अपना अपना होता है 
और उसका सुख भी तभी,
सूरज उगने से पहले रोप देते है
सभी अपनी अपनी खुशी।
 
मैया की सुबह  
सीता-राम के साथ होती है 
और कानों में गुंजती है 
घंटी की टन टन।
 
बीबी की सुबह 
चाय की उस प्याली के साथ होती है 
जिसकी गर्म प्याली 
जब उंगली को छूती है 
तब चौंक और चिढ़ कर जगता हूं मैं। 

बाबू जी की सुबह 
गाय-बछिया 
गोबर-गौंत 
और  
हरियरी के साथ साथ  
दुनिया भर की चिंताओं के साथ होती है।


मेरी सुबह  
कोयल की कूहू कूहू 
बगैचा में पेंड़ों के गीत 
या फिर रास्ते में मिले  
सियार को देख ठीठक कर होती है।  
मैं तो अपनी सुबह का कोना अपने पास रखता हंू


आपको अपनी सुबह मुबारक..............

रविवार, 8 मई 2011

बुढ़ा बरगद

बुढ़े बरगद के नीचे
उस रात जब मैं तुम्हारी
आगोश में था 
सर्दी की वह रात बहुत गर्म थी। 
तुम्हारे इन्कार में छुपे इकरार को 
मैंने समझा 
तुम्हारे आलिंगन का वह 
नैसर्गिक आनन्द 
कोहरे की उस रात में
पसीने की शक्ल में छलक उठा था। 
उस रात की सुबह 
हम दोनों 
आसमान में
डूब-उतर रहे थे
जैसे 
हंसा ने चुग लिया हो
मोती.............




बुधवार, 4 मई 2011

मेरे महबूब

मिजाजे महबूब को न जान पाया मैंने।
उनकी खुशी में खुशी, उदासी में मातम मनाया मैंने।। 


महबूब के दामन में हो फूलों की महक।
चमन के खार को अपना बनाया मैंने। 


महबूब के आंखों में देखी जब भी नमी।
कोने में छूप कर आंसू बहाया मैंने।  


महबूब के होठों की एक हल्की हंसी। 
जमीने दोजख में भी जन्नत पाया मैंने।।  


दर्द तो मेरे सीने में भी बहुत है हमदम। 
तुम उदास न हो जाओं, उसको भी छुपाया मैंने।।

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

अन्नागिरी



जब अन्ना ने लिया संकल्प
लोकतंत्र को बचाने का
जन लोकपाल लाने का
और
भ्रष्टाचार मिटाने का
तब
पूरा देश अन्ना के साथ
खड़ा हो गया।

किसी ने कहा
लौट आये गांधी
किसी ने कहा
आई आंधी
तुमने भी बुराई के विरूद्ध उठाया हाथ
अन्ना का दिया का दिया साथ।

पर
रूको
और मुठ्ठी भींच लो
दुनीया की छोड़ो
अपनी सीमा रेखा खींच लो
भ्रष्टाचार नहीं करेगें
भ्रष्टाचार नहीं सहेगें

फिर सफल होगें अन्ना
पूरा होगा गांधी का सपना...

अन्नागिरी



अन्नागिरी

जब अन्ना ने लिया संकल्प
लोकतंत्र को बचाने का
जन लोकपाल लाने का
और
भ्रष्टाचार मिटाने का
तब
पूरा देश अन्ना के साथ
खड़ा हो गया।

किसी ने कहा
लौट आये गांधी
किसी ने कहा
आई आंधी
तुमने भी बुराई के विरूद्ध उठाया हाथ
अन्ना का दिया का दिया साथ।

पर
रूको
और मुठ्ठी भींच लो
दुनीया की छोड़ो
अपनी सीमा रेखा खींच लो
भ्रष्टाचार नहीं करेगें
भ्रष्टाचार नहीं सहेगें

फिर सफल होगें अन्ना
पूरा होगा गांधी का सपना...

गुरुवार, 31 मार्च 2011

मैंने अप्रेल फूल मनाया।






मैंने अप्रेल  फूल मनाया।
हत्या का ब्रेकिग न्यूज चलबाया
रिपोर्टरों को खूब हड़काया
किसी को अस्पताल 
तो किसी को थाने बुलबाया।
मैंने अप्रेल  फूल मनाया।

किसी को जेल भेजवाया 
तो किसी को छापेमारी कह डराया।
मैंने अप्रेल  फूल मनाया।


पर बीबी नहीं फंसी मेरी जाल में
कोई बुला रहा है कह कर मुझे ही
घर से बाहर भगाया,
मुझकों की मुर्ख बनाया,
चाय भी नमक मिलाकर पिलाया
पूछने पर बोली 
श्रीमानजी 
मैंने अप्रेल फूल मनाया।




चित्र गूगल देवता से साभार 





रविवार, 27 मार्च 2011

भोज और कुत्ते।


फेंके गए जूठे पत्तलों को लेकर, 
मचा था घमाशान।

कई थे,
जो अपनी भूख के लिए
कभी भौंक 
तो कभी झप्पट रहे थे
एक दूसरे पर।

काफी शोर-शराबा था।
जोर जोर से बजते  
लाउडीस्पीकर 
और
चकाचौंध रौशनी थी।

और थी,
प्रतिस्पर्धा
सभ्य कहलाने की।

इस सबके के बीच किसी ने नहीं देखा
कि
पूरी के उन फेंके गए टुकडों के लिए
झपट रहे थे 

कुत्ते और 
आदमजात
साथ साथ.....


शनिवार, 26 मार्च 2011

पोंटिंग की बीबी






भारत से हारने के बाद
आस्टेलिया के कप्तान 
रिकी पोंटिंग जब घर आया।


मूड खराब है,
गर्मा गरम चाय पीलाओं ,
बीबी से फरमाया।

बीबी ने तुरंत 
प्लेट में चाय थमाया।

यह देख पोंटिंग को गुस्सा आया।
यह क्या मजाक है,
कप की जगह प्लेट में चाय लाई हो,
क्या तुम भी आज पगलाई हो।

बीबी भी गुस्से में थी
बोली 
अब तो चाय रोज प्लेट में ही आएगा
क्योंकि
कप तो तुम्हारा बाप घोनी ले जाएगा.............

बुधवार, 23 मार्च 2011

सोंचों ? ------23 मार्च शहादत दिवस पर शहीदों को नमन करती मेरी रचना। एक श्रद्धांजली।



सोंचो 
सरफरोशी की तमन्ना
अब किसके दिल में है?

कौन देखेगा 
जोर कितना बाजुए कातिल में है?

नेजे पर रख कर सर को अब
कौन बुलंद करेगा?

जिस देश की  खातिर
भगत सिंह
राजगुरू
सुखदेव ने 
फांसी को चूमा

सोंचो 

उस देश की  खातिर अब कौन मरेगा?




मंगलवार, 22 मार्च 2011

सावधान


देखा मैंने विज्ञापन एक
सलाह थी उसमें बहुत ही नेक।

सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।

समझ गया मैं बात एक,
दुर्घटनाऐं क्यों होती अनेक।
सरकार कहां है सावधान,
दुर्घटनाओं का हर जगह से प्रावधान।

सावधान अगर होती सरकार,
गोधरा न होती?
न होती गांधी के पुण्यभुमि पर
नरसंहार?

सावधान होती है सरकार,
बहुमत के लिए
एक वोट की है दरकार,

हो जाता है उसका जुगार।


शनिवार, 19 मार्च 2011

बुरा न मानों होली है। -----मीडियाबाजों ने जब पी ली भंग ---


मीडियाबाजों ने जब पी ली भंग
तो हो  गई शुरू पोल खोलने की जंग।

एक ने कहा 
सबसे तेज है हम
तो दूसरे ने कहा
हां जी,
शातीराने में।

श्रीमान ने फरमाया
सच है तो दिखेगा
किसी ने उनको भी समझाया
भ्रष्टों के हाथ बिकेगा।

एक ने कहा  
आपकी बात आपके साथ करेगें।
दूसरे ने नहीं गया रहा
ऐन केन प्रकारेन
अपनी झेली भेगेंगें।

जी बालों ने कहा 
जरा सोंचों
बगलगीर ने कहा 
हां जी
पतन की प्राकाष्ठा के बाद अब कहां जाओगे।

उन्होने कहा कि हम लेकर आये है 
एक उम्मीद
दूसरे ने मारा
उसे भी तोड़ दिया।



बुधवार, 16 मार्च 2011

ब्लॉगरिया




ब्लॉगिंग करने की बिमारी, 
संक्रामक है बड़ी भारी।

जिसको होता इसका इंफेक्शन,
काम नहीं आता कोई इंजेक्शन।

बड़ा खतरनाक है इसका संक्रमण,
यार दोस्त पर करता अतिक्रमण।

कितने ही लोग इससे ग्रस्त है,
घर-बाहर सभी इससे त्रस्त है।

जिसको लगा रोग वह अपने में मस्त है,
रात दिन ब्लॉगिंग करने में व्यस्त है।

कॉमेंट के लिए दिन भर रिफ्रेश करता है,
बिना पढ़े ही दूसरों कें ब्लॉग पर कॉमेंट करता है।

ब्लॉगर की बीबी बेचारी,
साथ निभाना लाचारी।

ब्लॉगर पति जरा भी करता नहीं है प्रेम,
पत्नी, फिट हो जाय कोई थीम है ऐसा फ्रेम।

पत्नी यदि पतिब्रता नहीं होती,
कब की भाग गई होती।

यह रोगे कभी भी, कहीं भी किसी को भी लग सकता है,
इस लिए बंधू कोई उपाय सोंचिए,
एड्स का नहीं, ब्लॉगिंग का टीका खोजिए...




चित्र गूगल देवता से साभार 






गुरुवार, 3 मार्च 2011

बरबीघा के पंचवदन स्थान मंदिर में लगे मेला मेरे कैमरे की नजर से....... यहां स्थापित पंचमुखी शिवलिंग प्रसिद्ध है...



जलभिषेक की मारमारी

 खिलौना बेचने की मजबूरी


खिलौने बाली मॉडल..

जलेबी का मजा



श्रृंगार की दुकान

वृक्ष की पूजा

अरे ये तो छूट ही गए जल चढ़ दूं

बुढ़ी माता भगवान के दरवार में

चंदन जरा घीस लू....

हरे रामा हरे कृष्णा...

गांव की मिठाई...झिल्ली

बच्ची बेच रही गुपचुप यानी पानीपुड़ी..



मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

Joke of the year by Digvijay Singh ...

Joke of the year by Digvijay Singh ... 
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» Digvijay Singh advises BJP to follow Gandhi's footsteps not Godse's...


» MY ---- advises Congress & Digvijay Singh to follow Gandhi's footsteps not Jinnah's...


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Note - Digvijay Singh isn't well please send him Get Well Soon messages !

Joke of the year by Digvijay Singh ...

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» Digvijay Singh advises BJP to follow Gandhi's footsteps not Godse's...


» MY ---- advises Congress & Digvijay Singh to follow Gandhi's footsteps not Jinnah's...


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Note - Digvijay Singh isn't well please send him Get Well Soon messages !

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

अखबारों की हेडलाइन की कतरनी कविता


संजीव कुमार की चुटीली कविता

गॉधी शताब्दी का शुभारम्भ,
दो व्यक्तियों ने जमकर लाठी चलाई। 


मद्य निषेध दिवस धूम-धाम से मना,
जहरीली शराब पीने से सात व्यक्तियों की मौत।


शिक्षा में आशातीत प्रगति, 
छात्र के झोले से बम बरामद।


परिवार नियोजन सप्ताह संपन्न,
एक महिला ने एक साथ चार बच्चों को जन्म दिया।


सूबे में सुरक्षा व्यवस्था चुस्त,
डी.एस.पी. के घर पर बम से हमला।


देश में खाद्यान की कोई नहीं-मंत्री,
आंध्रप्रदेश में सात दिन से भुखे किसान ने दम तोड़ा।


खाद्यान्न मुद्रा स्फीति में भारी गिरावट,
प्याज के दामों में पॉच गुना वृद्धि।


वेलेन्टाइन डे पे खुब लुटाया प्यार का तोहफा।
एक लड़के ने अपनी प्रेमिका के चेहरे पर तेजाब फेंका। 
हर बच्चे को पोलियों ड्राप्स का दो बुंद पिलाना है पोलियों दुर भगाना है। 


लगातार पॉच वर्षो से पोलियो ड्राप्स पीने वाले बच्चे पोलियो ग्रसित हुए।

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

हार्ट हॉस्पीटल।




किस्सा कुछ समझ न पाया,
एक होडिंग जब नजर में आया।

पढ़कर कुछ मन घबराया,
आगे पढ़ने को उकसाया।

लिखा था..
नये वॉल्व लगाये,
या पुराना वॉल्व
रिपेयर करायें।

छः माह की गारंटी देशी में,
तीन साल की गारंटी विदेशी में।

सोंचा मैंने
गाड़ियों का गैराज 
खुबसुरत है कितना,
शब्दों में मुश्किल है उसको लिखना।

फिर मोटे हरफों पर नजर गई,
पांव वहीं पर ठहर गये.

लिखा था

‘‘जीवक हार्ट हॉस्पीटल’’

यहां है
सरकारी कर्मचारियों, नेताओं के लिए है
व्यवस्था विशेष,
समझने को रह गया फिर कुछ शेष।

क्या नेता-अधिकारियों के वॉल्व होते है
जल्दी खराब,
तभी तो है यह निर्देश, 
उनके लिए व्यवस्था विशेष।

समझ गया तब मैं एक बात,
ये लोग होते है क्यों संगदिल,
क्योंकि कृत्रिम होतें है इनके दिल।

होते हैं ये बड़े हार्ड,
क्यांेकि 
नकली होता है इनका हार्ट।

सोमवार, 17 जनवरी 2011

डर है की तुम डर नहीं रहे हो






नहीं नहीं
वैसे समय में
जब
सब
कर रहें हों उपक्रम
तुम्हें चुप कराने का
तुम चुप मत रहना,,

नहीं नहीं
वैसे समय में 
जबकि
सल्तनत के बादशाह
देकर लोकतंत्र की दुहाई
तेरी जुवान सिल देना चाहतें हों
तुम जोर जोर से चिल्लाना,,

नहीं नहीं
वैसे समय में
यह सोंच कर 
कि कहीं तुम भी कहलाओ
बागी
एक आवाज लगाना,,

नहीं नहीं
तुम डर मत जाना

क्योंकि
डर तो वे रहें है 
कि
तुम डर नहीं रहे हो..............

रविवार, 9 जनवरी 2011

पाती प्रेम की




तेरे सौन्दर्यबोध में

मैंने बहुत से शब्द ढूंढे

अपनी भावनाओं को 

कोरे कागज पर बारंबार

उकेरा...

शब्द शर्मा जाते 
हर बार...।

फिर इस तरह किया मैने 

अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त

गुलाब की एक अबोध पंखुड़ी को 

लिफाफे में बंद कर 

तुम्हें भेज दिया।.