जी रहे है हम मुर्दों की तरह....
मरा हुआ सांप देख हिम्मत वढ़ जाती है,
पहले उसका मुंह थुरते है, जहां होता है विषैला दांत।
और
चाहते है पक्का करना उसकी मृत्यु
जीवित होने के सभी संभावनाओं की हद तक
पक्का....
लगाते है दो चार इंटा और उपर से...
है तो यह विषधर
पर उन्हें यकीन है यह मरा हुआ है।
तभी तो
रामलीला हो
या जन्तर मंतर
घर का चुल्हा उपास हो
या
लगी हो जोर की प्यास
हम उफ नहीं करते....
तभी तो
इसी की पूंछ पकड़
डराते है
अन्ना
और
रामदेव को
भागो
भागो...
न कोई हलचल
न कोई स्पंदन
जी रहे है हम
मुर्दों की तरह....
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंsahi aur sunder.
जवाब देंहटाएंन कोई हलचल
जवाब देंहटाएंन कोई स्पंदन
जी रहे है हम
मुर्दों की तरह....
बात ऐसी नहीं है बस हमारे सोने का अभ्यास है ज्यादा, जब जग जाऐंगे तब देखना...जगाना तो पड़ेगा ही...बहुत सुन्दर
आपकी रचना से मुझे पंजाबी के कवि पाश की रचना याद आ गयी जिसमें उन्होंने सपनों के मर जाने पर अद्भुत शब्द दिए हैं...इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकारें...
जवाब देंहटाएंनीरज