रविवार, 29 जनवरी 2012

कितनी हसीन हो तुम

( ब्लॉगों पर बिचरते हुए एक ब्लॉग पर जाना हुआ और उनकी कविता को पढ़कर कुछ कीबोर्ड पर उकेर दिया...)
















कितनी हसीन हो तुम
बिल्कुल अपनी कविता की तरह
तुम्हारे मुस्कुराहट की बुनावट
और तुम्हारी जुल्फों की घटा
तुम्हारे आंखों में तैरता सागर
और तुम्हारे गालों पर खिला गुलाब

जैसे इसी से चुराया हो तुमने शब्द...
और पिरो दिया हो अपनी संवेदना में
और रच दी हो एक कविता।

या फिर
तुम्हारी संवेदना
तुम्हारा दर्द
तुम्हारा इंतजार
तुम्हारा प्यार
तुम्हारे आंसू
तुम्हारी खुशी

जैसे
इसी से बनती हो कविता

और कहलातें हो हम सभी
कवि....



26 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ………सच कभी कभी इस अन्दाज़ मे भी कविता बन जातीहै।

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  2. इस रचना में सौन्दर्य की सृष्टि है ...

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  3. वाह ...बहुत ही सुन्‍दर भाव संयोजन ।

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  4. waah! waah! waah! iske alawa aur kuch shbd hi nahi mile.nishbd kiya aap ki rachna ne.....bdhaai aap ko

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  5. बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति ! चित्र भी बहुत सुन्दर है!
    बिल्कुल रचना के अनुरूप!

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  6. वाह, सच्ची कविता तो ऐसे ही अचानक बन जाती है।

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  7. चित्र और कविता दोनों बेजोड़...

    नीरज

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  8. वाह बहुत खूब ...


    ये सच हैं कि ...इस ब्लॉग जगत ने बहुत कुछ दिया ...

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  9. वो तो आमने आप में एक जीवित कविता ही होते हैं जो किसी के एहसास जगा देते हैं ... अच्छी रचना है बहुत ही ...

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  10. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज charchamanch.blogspot.com par है |

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  11. सुन्दर भावो की बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति
    सुन्दर भाव अभिव्यक्ति:-)

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  12. सुन्दर भाव ....
    कवियों की प्रेरणा का भेद खोल दिया आपने :-)
    साभार !

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