उस दिन
जब मार दिये जाएगें
वह आखरी आदमी भी
जो कर रहा है संघर्ष
गांव/मोहल्लों
गली/कूंचों
में रहकर,
अपने आदमी होने का....
आज जहां
थोक भाव में बिकते ईमान
और खरीदे जाते आबरू के बाजार में
कोई इसको बचा कर
चुनौती देता है तुम्हें....
आज जहां
सौ रूपये की खातिर
भाई भाई का खून बहाते,
कोई आदमी होने के लिए
लाखों खाक में मिलाते!
अपनों को अपनाते...
तुम बैठ कर सोंचना?
आखिर
आदमी की तरह
दिखने पर भी
तुम आदमी क्यों नहीं हो......
☺
जवाब देंहटाएंबहुत गहरी सोच दी है...
जवाब देंहटाएंबेहद गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गहन भाव की लाजबाब प्रस्तुती .
जवाब देंहटाएंMY NEW POST ...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...
बहुत गहरा सार गर्भित सवाल उठाया है आपने...इस बेजोड़ रचना के लिए बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
गहन अभिवयक्ति..........और सार्थक प्रश्न?????
जवाब देंहटाएंआदमी ही इस धरती पर सबसे खतरनाक जानवर हैं ...इंसान की शक्ल में ...
जवाब देंहटाएंये दिल से कुछ तो बाहर से कुछ और दिखता हैं ...''तुम आदमी क्यों नहीं हो''......ऐसा जटिल प्रश्न जिसका उत्तर किसी के पास नहीं हैं ....
सार गर्भित रचना के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंआखिर
जवाब देंहटाएंआदमी की तरह
दिखने पर भी
तुम आदमी क्यों नहीं हो.
वाह, कितनी ठोस बात कही है।
इस कविता में प्रत्यक्ष अनुभव की बात की गई है, इसलिए सारे शब्द अर्थवान हो उठे हैं ।
जवाब देंहटाएंसब आप सब आर्शीवाद है, कृपा बनाऐं रखें।
जवाब देंहटाएंसादर..
तुम बैठ कर सोंचना?
जवाब देंहटाएंआखिर
आदमी की तरह
दिखने पर भी
तुम आदमी क्यों नहीं हो......
bahut hi umda rachna hasi,dimaag ke darwaaje par dastak dene ka pryaas karti rachna...bdhaai is ke liye
दिखने के बाद भी तुम आदमी नहीं हो ... आज सभी जंगल के वासी बन गए हैं ... अग्नि, द्वेष में जलते हुवे ... शिकारी की तरह ...
जवाब देंहटाएंbahut umda!
जवाब देंहटाएंतुम बैठ कर सोंचना?
जवाब देंहटाएंआखिर
आदमी की तरह
दिखने पर भी
तुम आदमी क्यों नहीं हो
बहुत सुंदर । मेरे पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
तुम बैठ कर सोंचना?
जवाब देंहटाएंआखिर
आदमी की तरह
दिखने पर भी
तुम आदमी क्यों नहीं हो......
Bahut khoob!
सुन्दर संवेदनशील रचना, अरुण जी!
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