सतत हरे भरे का ग्रास कर
अपनों के लिए बनाया
एक रेशम का घर....?
कराहती रही
शहतूत की कोमलता
और बना हमारा कोकून....?
फिर अनवरत संधर्ष किया
कोकून से बाहर आने का...
फिर कोई रेशमी धागे का लोभी
डाल देता है कोकून को
खौलते हुए पानी में....
फिर वही कोकून बन जाता है
अपनों के लिए श्मशान....?
रेशम के कीड़े और मुझमें
कितनी समानता है...
रेशम के कीड़े और मुझमें
जवाब देंहटाएंकितनी समानता है.... निःशब्द सी प्रकृति और प्रवृति में उलझी हूँ
दूसरों के लिए मर मिटने का नाम ही ज़िन्दगी है ..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.in
bahut sunder likha hai aapne.....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सुंदर रचना, अच्छा लेखन ...
जवाब देंहटाएंMY NEW POST ...कामयाबी...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
बहुत कुछ कहती गहन रचना...
जवाब देंहटाएंसादर.
इस संसार में आने वाले हर प्राणी का कर्म पहले से ही निश्चित ...जो उसे करना पड़ता हैं ...
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