रविवार, 29 जनवरी 2012

कितनी हसीन हो तुम

( ब्लॉगों पर बिचरते हुए एक ब्लॉग पर जाना हुआ और उनकी कविता को पढ़कर कुछ कीबोर्ड पर उकेर दिया...)
















कितनी हसीन हो तुम
बिल्कुल अपनी कविता की तरह
तुम्हारे मुस्कुराहट की बुनावट
और तुम्हारी जुल्फों की घटा
तुम्हारे आंखों में तैरता सागर
और तुम्हारे गालों पर खिला गुलाब

जैसे इसी से चुराया हो तुमने शब्द...
और पिरो दिया हो अपनी संवेदना में
और रच दी हो एक कविता।

या फिर
तुम्हारी संवेदना
तुम्हारा दर्द
तुम्हारा इंतजार
तुम्हारा प्यार
तुम्हारे आंसू
तुम्हारी खुशी

जैसे
इसी से बनती हो कविता

और कहलातें हो हम सभी
कवि....



बुधवार, 25 जनवरी 2012

अपने ही देश में तिरंगा पराया हो जाएगा।



किसने सोंचा था

‘‘केसरिया’’

आतंक के नाम से जाना जाएगा।

‘‘सादा’’

की सच्चाई गांधी जी के साथ जाएगा।

‘‘हरियाली’’

के देश में किसान भूख से मर जाएगा।


और

कफन लूट लूट कर स्वीस बैंक भर जाएगा।


किसने सोंचा था

लोकतंत्र में
गांधीजी की राह चलने वाला मारा जाएगा।

आज भी भगत सिंह फंसी के फंदे पर चढ़़ जाएगा।

किसने सोंचा था

भाई भाई का रक्त बहायेगा।

देश के सियाशत दां आतंकियों के साथ जाएगा।

अपने ही देश में तिरंगा पराया हो जाएगा।

और हमारा देश
शान से
आजादी का जश्न मनाएगा।


जय हिंद।

सोमवार, 23 जनवरी 2012

गांव का अंधविश्वास और विलुप्त नैतिकता।


गांव में
उड़ते हुए नीलकंठ को देखना शुभ है
और यात्रा पर निकलते हुए यात्री
ढेला मार कर इसे उड़ते है....

और कौआ
छप्पर पर बैठ कर जब करता हैं
कांव कांव
तो मेहमान के आने की सूचना हो जाती है

और टीटहीं के बारे में कहते है कि
यह टांग उपर कर सोता है
आकाश कहीं गिरा तो यह
रोक लेगी उसे...

यहां तक की लक्ष्मी की सवारी उल्लू को
भी अशुभ मानते है गांव के लोग

या फिर गिद्ध का घर पर बैठ जाना
माना जाता है अशुभ।
अजीब अंधविश्वासी होते है गांव के लोग भी....


शहरों मंे
लक्ष्मी भी रहती है
और टांग को उपर किए
टिटहीं-लोग भी..

हर जगह मिल जाएगें गिद्ध
और कौआ भी

पर शहरों मंे
नैतिकता, प्रेम और ईमानदारी की तरह
नीलकंठ हो गया विलुप्त..

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

मुसाफिर जिंदगी..


होने और
नहीं होने
के बीच
संषर्ध करती जिंदगी में
होना ही सबकुछ नहीं होता?
नहीं होना भी, बहुत कुछ होता है!

जैसे की,
देह के लिए
सांसों का होना
सबकुछ होता है!

और, सांसों के लिए
देह का होना
कुछ भी नहीं।


प्रेम के लिए केवल
प्रेम का होना सबकुछ होता है,
और नफरत के लिए,
नफरत का होना कुछ भी नहीं।



जीवन में दोनों पहलू
एक दूसरे के पूरक हैं
पर
दोनों का एक साथ
होना, नहीं होता है
और
अधूरी जिंदगी
अनवरत सफर पर चलती रहती है
मुसाफिर की तरह...

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

शुन्यता?


(अरूण साथी सुबह सुबह प्याज छिलते हुए)


सबकुछ उघाड़ देना चाहता हूं,
जीवन ने जो दिया उसको,
जीवन ने जो लिया उसको,
स्याह,
सफेद,
निरर्थक,
सार्थक,
लिप्सा,
अभिप्सा,
सबको,
परत दर परत।

जनता हूं,
प्याज की तरह ही होती है जिंदगी,
उघाड़ कर भी अन्ततः मिलेगी
शुन्यता!

शुन्यता?
जहां से आरंभ
और जहां पर अन्त होती है जिंदगी....




विवेकानन्द की जयंती (युवा दिवस) पर मेरे द्वारा खिंची गई एक बोलती तस्वीर...


शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

हे भारती देखो तुम











हे भारती देखो तुम,
कैसे अपने ही आज लूट रहे,
कैसे आतंकी धर्मभेष में छूट रहे।

हे भारती देखो तुम,
कैसे, गांधी की टोपी आज लुटेरों के सर पर है,
कैसे आज फांकाकशी भगत सिंह के घर पर है।

हे भारती देखो तुम,
आज कैसे जनता की नहीं है चलती,
देखो, कैसे रक्षक ही अस्मत को मलती।

हे भारती देखो तुम,
कैसे अन्नदाता पेट पकड़ कर सो जाते,
और कहीं पिज्जा खा खा कर कारोबारी नहीं अघाते।

हे भारती देखो तुम
अब गंधारी का ब्रत त्याग करो,
एक बार फिर तुम लक्ष्मीबाई का रूप धरो।

हे भारती देखो तुम,
जब देश की खातीर, एक बुढ़ा करता है उपवास,
तब सर्वोच्च सदन में बैठे सब करते है उपहास।

सोमवार, 2 जनवरी 2012

अपना प्यारा गांव।



(पटना एयरपोर्ट पर इंतजार करते हुए गढ़े गए कुछ शब्द...)


यह दुनिया कुछ अजीब है
पता नहीं, पर अनमना सा हूं
भीड़ है, पर मैं अकेला हूं
कुछ अजीब सा एटेनशन है
लोगों के चेहरे पर
जैसे रोबोट है सब।

यहां पर सभी हैं अति सभ्य
या जैसे सहजता छोड़
सभी ने ओढ़ लिया हो अतिवाद।



पर यहां भी है एक बच्चा
जो इधर उधर भाग रहा है
पर लोग उसकी मां को धूर रहें है
संभालती क्यों नहीं?

आफ्हो
यह रोबोटिक दुनिया
और अपना प्यारा गांव।