सोमवार, 27 जून 2011

जी रहे है हम मुर्दों की तरह....


जी रहे है हम मुर्दों की तरह....

मरा हुआ सांप देख हिम्मत वढ़ जाती है,
पहले उसका मुंह थुरते है, जहां होता है विषैला दांत।
और
चाहते है पक्का करना उसकी मृत्यु
जीवित होने के सभी संभावनाओं की हद तक
पक्का....

लगाते है दो चार इंटा और उपर से...

है तो यह विषधर
पर उन्हें यकीन है यह मरा हुआ है।

तभी तो
रामलीला हो
या जन्तर मंतर

घर का चुल्हा उपास हो
या
लगी हो जोर की प्यास
हम उफ नहीं करते....


तभी तो
इसी की पूंछ पकड़
डराते है
अन्ना
और
रामदेव को
भागो
भागो...

न कोई हलचल
न कोई स्पंदन
जी रहे है हम
मुर्दों की तरह....

शुक्रवार, 17 जून 2011

गांधी जी के तीन बंदर


अब तो सत्याग्रह भी जुर्म हो गया है देश में?
राजगद्दी पर राजा बैठा है बंदर के भेष में.।

मंत्री से संत्री तक सब बोले हिटलरवाणी,
बाबा और संतो पर चढ़ दौड़ती है सरकारी जवानी।
बड़ा मजा आता है इनको करने क्लेश में....,
अब तो सत्याग्रह भी जुर्म हो गया है देश में?

गरीबी मिटाने का दावा इनका हो गया है पूरा,
घरती के बेटे का सपना धरा रह गया है अधूरा।
चार आना पुंजी है सौ लोगों की जेब में,
अब तो सत्याग्रह भी जुर्म हो गया है देश में?

गांधी जी के तीनों बंदर दिख जाएगें दिल्ली में,
लोकतंत्र को उड़ा रहें है हंस कर ये खिल्ली में।
सत्याग्रह,
न देखो,
न बोलो,
न सुनो,
राजा का फरमान टंग गया है सभी प्रदेश में
अब तो सत्याग्रह भी जुर्म हो गया है देश में?

शुक्रवार, 3 जून 2011

जीवन की रेल....


अहले सुबह अलसाये
जब यात्री  अपने वर्थ से
नीचे उतरे तो बिखड़ी गंदगी को देख
नाक मुंह  सिंकोड़ने लगे..

गंदा तो सभी ने किया पर साफ कौन करेगा?

फिर सीख लेते हैं इसी तरह जीना
गंदगी के साथ....

तभी भावशुन्य चेहरे के साथ आता है
वह आदमी
चिथड़ों में लिपटा शरीर
भनभनाती मख्खियां..
और बुहारने लगता है..

तभी एक सज्जन पिच्च से पान की पिरकी
फेंकते हुए कहते हैं
‘‘पागल’’?

गंदगी को फेंक लौटा
वह आदमी..
भावशुन्य चेहरे के साथ
फैला कर  अपना हाथ
खामोशी से देखता रहा
सबको बारी बारी

तभी मैं डर गया
लगा जैसे
वह कह रहा हो
कितने गंदे लोग
कितना गंदा समाज
कितने पागल एक साथ.....