#प्रेम की #कविता
(अरुण साथी)
वह रोज मिल जाती है
कभी बीच सड़क
कभी गली में
कभी छत पे
कभी झरोखे से
कभी कभी
मिल जाती है
सपनों में भी
नज़रें मिलते ही
वह आहिस्ते से
मुस्कराती है
फिर नजरे झुका
चली जाती है
बस...
#प्रेम की #कविता
(अरुण साथी)
वह रोज मिल जाती है
कभी बीच सड़क
कभी गली में
कभी छत पे
कभी झरोखे से
कभी कभी
मिल जाती है
सपनों में भी
नज़रें मिलते ही
वह आहिस्ते से
मुस्कराती है
फिर नजरे झुका
चली जाती है
बस...
राम ने कहा
सुनो वत्स
मुझे मर्यादा पुरुषोत्तम
जानते है सब
मुझे मर्यादा में ही रहने दो
बाल्मिकी और तुलसी
की भावनाओं के साथ ही मुझे
जन जन के जीवन में बहने दो
मर्यादा टूटी तो
मुझे कौन पुरुषोत्तम मानेगा
फिर
रावण को भी गुणी मान
कौन अपने भ्राता
को उसके चरणों में भेज
जीवन का सूत्र जानेगा...
मुझे दिव्य दिगंबर
बना दोगे तो
सबरी के जूठे
बेर कौन खायेगा
केवट की नाव चढ़
कौन उस पार जायेगा
फिर माता अहिल्या
शिला ही रहेगी
इस तरह फिर
कौन उद्धारक आयेगा
मुझे तो जटायु
हनुमान, बानर
के साथ ही रहने दो
स्वर्ण महलों के मुझे बिठाओगे
तो भला रावण वह,
जिसकी सोने की लंका थी
किसी को कैसे बताओगे
रावण वह
जिसने साधु के भेष
में सीता हरण किया
किसी को कैसे समझाओगे
सुनो वत्स..सुन लो..