गुरुवार, 25 मार्च 2010

कहां हो भगवान


वमुिश्कल अपने मालिक से
आरजू-मिन्नत कर
जुटा पाई अपने बच्चे के लिए 
एक अदद कपड़ा।

मेले में बच्चे की जिदद ने
मां को बना दिया है निष्ठुर।

बच्चे की लाख जिद्द पर भी
नहीं खरीद सकी एक भी खिलौना।

देवी मां की हर प्रतिमा के आगे
हाथ जोड़ 
सालों से कर रही है प्रर्थना 
एक मां.....

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

यह कोई कहानी नहीं, मैं अपना दर्द आपके साथ बांटना चाहता हूं बस....... प्रेम की अग्निपरीक्षा

यह कोई कहानी नहीं, मैं अपना दर्द आपके साथ बांटना चाहता हूं बस.......
प्रेम की अग्निपरीक्षा

रीना के सिसकने की आवाज से मेरी आंख खुल गई और मैं रीना को टहोकते हुए पूछा क्या बात है क्यों रो रही होर्षोर्षो वह कुछ नहीं बोली। उसके आंखों से अविरल आंसू झड़ रहे थे। उसकी सिसकियां धीरे धीरे तेज हो रही थी। इस बार मैंने उसे जोर से झकझोरा तब उसने हल्की सी जुिम्बश ली और मैं समझा की यह तो सोई हुई है और नीन्द में रो रही है। शायद कोई बुरा सपना देखा होगा। तब मैंने उसे जोर से झकझोरा तो वह अकचका कर क्या हुआ, क्या हुआ, कहती हुई उठ बैठी और जब मैंने उसे उसे बताया की तुम नीन्द में रो रही थी तो वह सचमुच मुझसे लिपट कर रोने लगी। बोली, पिताजी मर गए, यह सपना देख रही थी और सपने में रो रही थी। उसकी इस बात से मैं सिहर गया, एक नारी अपने आकांझाअो, अरमानों को किस हद तक सीने में दबा सकती है, आज एहसास हुआ। हम दोनों ने प्रेम विवाह किया है, वह भी घर से भाग कर और शादी के आज अठठारह साल हो गए और तब से आज तक रीना को उसके मायके से कोई सम्बंध नहीं है। उसके पिता और भाईयों की नज़र में वह मर चुकी हैं। शादी कें कुछ ही दिनों बाद रीना के परिजनों ने एक पुतला बना कर  उसका दाह-संस्कार किया, तेरह दिनों का कर्मकाण्ड किया, सर मुण्डवाऐ, पण्डितो मों भोज दिया और घोषणा कर दिया गया आज से वह मर चुकी है। उस समय जब उसे इस बात का पता चला तो उसने गर्व से कहा था कि ``यह उसके प्रेम की अग्निपरीक्षा है।´´ और इन अठठारह सालों में कितने ही अच्छे बुरे दिन आये गए और हमारा सम्बंध और मजबूत होता गया। आज तक इतनों सालों में एक बार भी उसने अपने स्वाभिमान को डिगने नहीं दिया पर आज वह रो रही थी, उसके आंखों से अविरल आंसू वह रहे थे और मुझे लग रहा था कि यह आंसू मुझसे ही कोई सवाल पूछ रहा हो।

रीना के सपनों में रोने की वजह भी है। कल ही किसी ने बताया कि उसके पिताजी की हालत गम्भीर है और अब वे नहीं बचेगें। जबसे उसने यह सुना वह चिन्तित रहने लगी। इतने सालों से सहेजा उसका स्वाभीमान आज डिगने लगा। पिता से अन्तिम मुलाकात भी नहीं हो सकने की संभावना ने उसे डिगा दिया। रीना का अपने पिता के प्रति प्रेम तो नैसगिZक था पर उस पिता के लिए जिसने उसके लिए प्रेम करने की सजा अग्निपरीक्षा मुकर्रर की है। 

हम दोनो बचपन से ही एक साथ खेलते हुए जवान हुए और  आज जीवनसाथी के रूप में जी रहे है पर रीना के लिए प्रेम की सजा बहुत बड़ी थी शायद सती के अग्निकुण्ड में जलने जैसा और मैं शिव तो हूं नहीं की ताण्डव करू। बस अपने प्रेम को अग्नि कुण्ड में जलता देख रहा हूं। 
अगले पोस्ट में जारी....................




राम की हत्या

पड़ी है राम की लाश
नाभी में मारा गया ``बाण´´
हनुमान ने निभाई
विभीषण की भूमिका

बतलाया रावण को
राम के अमृत कलश का राज
बतलाया कि राम तभी मर सकते है
जब उनके भक्त ही उन्हें मारेंगेें।

यह भी कि
उनके घर में ही उनकी हत्या की जा सकती है।

प्रगल्भ रावण ने स्वांग रचा
रामभक्त का
और पाषण्डी हनुमान के साथ
घुस कर अयोध्या में
कर दी ``राम की हत्या´´......

प्रियतम तुम हो ..............



प्रियतम तुम हो
सुबह का सूरज
जिसकी आभा से खिलता रहै
जीवन का फुल
सावन की मादक बून्द
जिसके स्पशZ से
भींग जाता है
अन्र्तमन।



पुरबा बयार
जो सांसों में आविष्ट हो
तृषित जीवन को करती है
तृप्त।


अन्तत:
तुम हो तो है
जीने की सार्थकता
और
मृत्यु के आलिंगन का आन्नद भी.....

बुधवार, 17 मार्च 2010

मैं आग लगाना चाहता हूं।



मैं आग लगाना चाहता हूं।
बिना तिली बिना पेट्रोल
अपने पराये सबके अन्दर
दबी आग को भड़काना चाहता हूं।
मैं आग लगाना चाहता हूं।

जाति-धर्म और देश प्रदेश
इन शब्दों के जालों को
मैं अब जलाना चाहता हूं।
मैं आग लगाना चाहता हूं।

राम-रहीम और जेहाद
नक्सलबाद और  आतंकवाद
बुर्जुआ, सर्वहारा की साम्यवाद
सम्पूर्ण क्रान्ति की समाजवाद
सब शब्दों के है मकड़जाल
इन सब को मैं राख बनाना चाहता हूं।
मैं आग लगाना चाहता हूं।

मन्दिर तोड़ो
मिस्जद तोड़ों
तोड़ों गिरजाघर, गुरूद्वारा
कहीं नहीं भगवान मिलेगें
इन तकोेZ कें जालों में
कलयुग के शैतान मिलेगें
इन नक्कारों में मैं सबकों
यह बतलाना चाहता हूं।
मैं आग लगाना चाहता हूं।

जैसे आये थे धरा पर
नंग-धड़ग और शुन्य लिए
अपने सृष्टा कें शरणों में
वैसे ही जाना चाहता हूं
मैं सब जलाना चाहता हूं.............

बुधवार, 10 मार्च 2010

मेरे देश में

मेरे देश में
पिज्जा
एम्बुलेंस से पहले पहूंचती
लूट के बाद पुलिस सजती

मेरे देश में
कार लोन पांच परसेंट पर
एडुकेशन लोन बारह पर मिलती

मेरे देश में
चावल बिकता चालीस रूपये
सिम है मुफ्त में मिलती

मेरे देश में
रही नहीं उम्मीद कहीं अब
चौथेखंभे  से लेकर न्याय तलक है बिकती
मेरे देश में.......

मंगलवार, 9 मार्च 2010

अब बैताल डाल डाल

आज हर जगह पाये जाते है
जिवित बैताल
संवेदनहीन
निष्प्राण
और तािर्ककता से भरपूर
आज घरों में भी
टंगने पर टंगा रहता बैताल।
दफ्तर में बाबूओं की
फाइलों से लेकर,
नेताओं की टोपी पर बैठा
पूछता रहता है सवाल।

अब तो बैताल संसद में भी नज़र आने लगे है।
संवेदनहीन होने के लिए, संवेदनाओं को जगाने लगे है।

महिला बिल से लेकर,मण्डल के कमण्डल तक।
संसद के बाहर-भीतर, उछलते नोटों के बण्डल तक।

बैतलवा डाल डाल गीत गाने लगे है।
हद तो यह कि आज बिक्रमादित्य भी दूर बैठकर
मुस्कुराने लगे है।

बुधवार, 3 मार्च 2010

काला अंग्रेज

यह लूट-खसोट
भ्रष्टाचार
हिंसा
खून की होली
यह विध्वंस
अक्षम्य अपराध
कितने बेलज्ज हो तुम
परतन्त्रता तुमने झेली नहीं न
इसलिए आजादी रास नहीं आ रही
या फिर वषो गुलाम रहकर
बन गए हो तुम भी 
``काले अंग्रेज´´
पर
देना होगा तुम्हें भी हिसाब
तुम बच नहीं सकते 
गुलामी की बेड़ियां काट
जिन्होंने तुम्हे नर्क से निकाला
तुम हुए स्वतन्त्र


एक दिन 
वे शहीद आयेगें फिर
और मांगेगें तुमसे 
तुम्हारे किये का हिसाब....