बुधवार, 30 नवंबर 2016

विरहन..

जब भी वह मिलती है
हौले से मुस्कुरा,
आहिस्ते से मचलती है!

वैसे ही जैसे,
सूरज की लाली से
सूर्यमुखी खिलती है!


वैसे ही जैसे,
भौरे की गुनगुन से
कली की पंखुड़ी खुलती है!

वैसे ही जैसे,
चाँद की चांदनी से
चकोर मचलती है!

वैसे ही जैसे,
मोर नृत्य से
मोरनी पिघलती है!

वैसे ही जैसे,
प्रेमपुलक
गजगामिनी निकलती है!

वैसे ही जैसे,
प्यासी धरा से
मेघ मिलती है!

वैसे ही जैसे
धूप के ताप से
बर्फ पिघलती है!

और 
वैसे ही जैसे,
सूर्य मिलन को
फीनिक्स पंक्षी 
की अभीप्सा जलती है..

मंगलवार, 1 नवंबर 2016

झूठ की खेती

झूठ की खेती
(अरुण साथी)

वह बंजर जमीन हो
या कि हो
मरूभूमि
या हो
पठार-पर्वत

कुछ लोग
बड़े कुशल उद्यमी
होते है

और वे बंजर जमीन पे भी
झूठ की फसल बोते है

लच्छेदार बातों से
उसे सींचते
कोड़ते और निकोते है

सच कहता हूँ
कुछ लोग
झूठ की खेती करने में
बड़े मास्टर होते है..