शनिवार, 25 दिसंबर 2021

शैतान की उदासी

शैतान की उदासी
(अरुण साथी)
1
उन्होंने कहा 
शैतान हो तुम 
आदमखोर
रक्तपिपासु

धर्म के नाम पर 
बंदे का कत्लेआम 
हैवानियत है
तुम्हारा काम

इंसानियत ने उसे 
हैवान-हैवान 
शैतान-शैतान 
पुकारा
शैतान उदास हो गया....

2
अब वे उसी के
जैसे हो गए
वे कहते हैं 
तुम शैतान 
मैं भी शैतान 
तुम हैवान 
मैं भी हैवान
अब शैतान प्रसन्न हो गया...







शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2021

दलित सवर्णों से पहले मंदिर में करते हैं प्रवेश, होता है प्रतीकात्मक युद्ध

दलित सवर्णों से पहले मंदिर में करते हैं प्रवेश, होता है प्रतीकात्मक युद्ध


सवर्णों और दलितों के बीच भेदभाव, छुआछूत, शोषण, दमन के किससे से हटकर एक सकारात्मक यथार्थ की दूसरी क़िस्त। हालांकि इस तरह के यथार्थ को ना तो सोशल मीडिया पर ज्यादा उछाल मिलेगा, ना ही बड़े बड़े मीडिया घराने इस को महत्व देंगे। ऐसी बात नहीं है कि सकारात्मक बातें नहीं है पर समाज में घृणा को बढ़ाने के मामले अधिक मिलते हैं। ऐसी बात नहीं होती तो बिहार केसरी डॉक्टर श्री कृष्ण सिंह, ब्राह्मणों और पंडितों से लड़कर मुख्यमंत्री रहते हुए देवघर के मंदिर में दलितों के प्रवेश को लेकर इतना संघर्ष नहीं करते। समाज को दलितों से भेदभाव, छुआछूत मिटाने के लिए संदेश नहीं देते।


खुशी-खुशी सवर्ण दलितों से पराजय को स्वीकार करते हैं। खुशी खुशी उन्हें सबसे पहले मंदिर में प्रवेश करने दिया जाता है। खुशी-खुशी जब दलित मंदिर में पूजा कर लेते हैं तब सवर्णों की पूजा शुरु होती है।


शेखपुरा जिले में यह मामला मेहुस गांव में भी देखने को मिलता है। यह भूमिहार बहुल गांव है। यहां माता माहेश्वरी का सिद्धि पीठ है। जहां नवमी के दिन भूमिहार और दलितों के बीच प्रतीकात्मक युद्ध होता है। इस युद्ध में भूमिहार समाज के लोग रावण की सेना बनते हैं और दलित समाज के लोग राम की सेना बनते हैं ।

दोनों के बीच नवमी के दिन प्रतीकात्मक युद्ध होता है । इस युद्ध में भूमिहार समाज के लोग दलितों को मंदिर में प्रवेश करने से रोकते हैं। दोनों सेना में युद्ध होती है और भूमिहार समाज के लोग इसमें खुशी खुशी हार जाते हैं। और फिर दलित मंदिर में खुशी खुशी प्रवेश करते हैं। जिसके बाद सभी तरह की पूजा गांव में शुरू होती है।


यह परंपरा कई सदियों पुरानी है। ग्रामीण अंजेश कुमार कहते हैं कि इस परंपरा के कई मायने हैं। रावण और राम के युद्ध के बहाने दलित समाज को सम्मान देने और आपसी भेदभाव मिटाने को लेकर यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है। दलित समाज के लोग पहले मंदिर में प्रवेश करते हैं तभी मंदिर में किसी तरह की पूजा पाठ शुरू होती है। दलितों के मंदिर में प्रवेश की रोक को लेकर देश दुनिया में कई चर्चाएं हैं परंतु यहां माता महेश्वरी के मंदिर में दलित ही पहले मंदिर में प्रवेश करते हैं। प्रतीकात्मक युद्ध होता है। भूमिहार की हार होती है।और दलित मंदिर में प्रवेश कर पूजा का शुभारंभ करते हैं। भाईचारा और सामंजस्य का यह एक अनूठी मिसाल है जो देश में कहीं नहीं मिलेगी।

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2021

हे दुर्गे

हे दुर्गे
***
नवरात्र में
पुरुषों के मन में
नारी के लिए
कितना सम्मान है..?
कहीं पूजा
कहीं हवन
कहीं पाठ
कहीं उपवास
कहीं अनुष्ठान है..!

हे माँ दुर्गे 
बताओ
कोख में मरती बेटी
दहेज हेतु जलती बहू 
आबरू लूट कर
अट्टहास करने वाला
कहाँ रहता वह शैतान है...?

सोमवार, 30 अगस्त 2021

भगवान होने के लिए..

#भगवान
कैदखाने में
माँ देवकी
मौत के आगोश में
जिसे जन्म दिया
वही कृष्ण है


माता यशोदा
का प्यार और
कभी कालिया नाग
तो कभी राक्षसी
से जो बच पाया
वही कृष्ण है

माखन चुराया
गैया चराई
सुदामा का
चबेना खाया
और द्वारिकापुरी में
सुदामा को गले लगाया
वही तो कृष्ण है


राधा का प्रेम मिला
और राधा जिसे न मिली
वही तो कृष्ण है

परमेश्वर होकर भी
जिसे परमेश्वर होने है
अभिमान न आया
वही तो कृष्ण है


जिसे
भगवान होने के लिए
कृष्ण होना पड़ता है
वही तो कृष्ण है...
(तस्वीर बेटी प्रति राजनंदनी की बनाई हुई)

शनिवार, 17 जुलाई 2021

दानिश

दानिश
उसकी कानों को
सच सुनने की आदत नहीं है
न ही उसकी आँखों को
सच देखना अच्छा लगता है

फिर कैसे वह दानिश को पसंद करता
उसकी तस्वीरों से उठती चीत्कार से
कांप जाए करेजा कसाई का भी
फिर उसका करेजा भी लरजता होगा

पूछते है सभी, दानिश को 
आखिर मारा किसने
आखिर कुछ लोग मौन क्यों है
और कुछ लोग कठहंसी कर रहे

सुनों, 
दानिश को उसीने मारा
जिससे वह लड़ रहा था

तालिबानी,
इधर के हों
या उधर के
फर्क क्या पड़ता है...

मंगलवार, 1 जून 2021

एक गांव-अनेक गांव


हर गांव में बसते हैं कई गांव 
एक गांव में एक गांव अमीरों का होता है
एक गांव में दूसरा गांव गरीबों का होता है 
गरीबों के गांव में भी अमीर बसते हैं 
और अमीरों के गांव में भी गरीब बसते हैं

हर गांव में अमीर शोषक होते हैं 
और गरीब शोषित 
आप इसे जातियों में भी खंडित कर देखिए 
मैं इसे वर्ग संघर्ष के रूप में देखता हूं

शनिवार, 29 मई 2021

अनुत्तरित

अनुत्तरित
--
खुद ही भट्ठी बनाई 
भाथी भी खुद ही बनाया
खुद ही कोयले सजाए 
धीरे-धीरे भाथी से हवा दी
आग सुलगाई

फिर खुद ही खुद को
झोंक दिया
लहलह लहकती भट्ठी में

फिर खुद ही छेनी-हथौड़ा ले
काट-पीट कर 
औजार बनाए 
कभी हंसुआ 
कभी हथौड़ा
कभी खुरपी 
कभी हल 
कभी कलम 
कभी-कभी तलवार भी

फिर एक दिन 
अपनों ने ही पूछ लिया 
किया क्या जीवन भर...

सोमवार, 24 मई 2021

घर-वापसी

दरवाजे खिड़कियां
खुली रखी थी हमेशा
हर कोई आ-जा सकता था
बेरोकटोक
हवाओं की तरह
दृश्य-अदृश्य
स्पृह-अस्पृह
न जाली, न पर्दे, न शीशे
सब कुछ खुला खुला
एक दिन अचानक
मृत्यु ने दस्तक दी
कहा, चलो
चौंक गया
यह क्या
ना शोर, न शराबा
ना विरोध, न प्रतिरोध
यह कैसे
कहा- घर वापसी

रविवार, 28 मार्च 2021

होलिका में कौन जला..


जब भी होलिका को

जलते हुए देखोगे

तो वहां होलिका को
जलते हुए मत देखना
यह देखना कि कैसे
आज भी हिरण्यकश्यप
स्वघोषित ईश्वर कहलाता है

कैसे वह
अपने ही पुत्र के लिए
चिता सजाता है
कैसे आग से नहीं
जलने वाली होलिका को
उसमें बैठाता है
कैसे होलिका जल जाती है
प्रह्लाद बाहर निकल आता है

और सुनो
यह भी देखना कि
उसमें हम ही तो नहीं जल रहे हैं..

जोगीरा

1
बेच दिए रेल
बेच दिए जहाज
बेच कर रोजगार
साहेब बने बन्दनवाज
जोगीरा सारा रा रा
2
खरीद लिए कैमरा
खरीद लिए कलम
अब तो चारणी कर
चौथे पौव्वा कर रहा रस्म
जोगीरा सारा रा रा
3
रो रहे किसान
रोये नौजवान
रो रही है धरती माता
हँस रहे भक्तजन महान
जोगीरा सारा रा रा

***
लाल रंग नियर लहराये जिनगी,
हरियर-हरियर हो घर परिवार!
सतरंगी हो मन का आंगन,
इंद्रधनुष हो ई संसार!!

स्नेह लुटाहो सब जन मिलके,
बग बग उज्जर हो मन के द्वार!
बैर मिटाहो जात-धरम के,
खुशियाँ बाँटहो अपरंपार!!

होली के हार्दिक शुभकामनाएं!!

रविवार, 21 मार्च 2021

प्रेम की तस्वीर

#अहोभाव
आंखों से लिखो प्रेम प्रिये
आंखों से पढ़ो प्रेम प्रिये
आंखों से कहो प्रेम प्रिये
आंखों से सुनो प्रेम प्रिये
**
अकारण कारण प्रेम प्रिये
निराकारी आकार प्रेम प्रिये
सर्व साकार प्रेम प्रिये
राधे का आधार प्रेम प्रिये
कन्हैया का सार प्रेम प्रिये

(प्रेम की तस्वीर! व्हाट्सएप से प्राप्त प्रेम की जीवंत  तस्वीर ! )

सोमवार, 8 मार्च 2021

पंख

#पंख
पहले पंख लगाए
फिर चलना सीखा
फिर पंख फैलाये
फिर उड़ना सीखा

फिर सपने संजोए
आसमान को छूने की
फिर संघर्ष किया
बुलंदी तक उड़ने की

उसे नागवार लगा
उससे ऊंचा वह
कैसे उड़ सकती है

उसने पर कतर दिए..