शनिवार, 29 मई 2021

अनुत्तरित

अनुत्तरित
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खुद ही भट्ठी बनाई 
भाथी भी खुद ही बनाया
खुद ही कोयले सजाए 
धीरे-धीरे भाथी से हवा दी
आग सुलगाई

फिर खुद ही खुद को
झोंक दिया
लहलह लहकती भट्ठी में

फिर खुद ही छेनी-हथौड़ा ले
काट-पीट कर 
औजार बनाए 
कभी हंसुआ 
कभी हथौड़ा
कभी खुरपी 
कभी हल 
कभी कलम 
कभी-कभी तलवार भी

फिर एक दिन 
अपनों ने ही पूछ लिया 
किया क्या जीवन भर...

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