अनुत्तरित
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खुद ही भट्ठी बनाई
भाथी भी खुद ही बनाया
खुद ही कोयले सजाए
धीरे-धीरे भाथी से हवा दी
आग सुलगाई
फिर खुद ही खुद को
झोंक दिया
लहलह लहकती भट्ठी में
फिर खुद ही छेनी-हथौड़ा ले
काट-पीट कर
औजार बनाए
कभी हंसुआ
कभी हथौड़ा
कभी खुरपी
कभी हल
कभी कलम
कभी-कभी तलवार भी
फिर एक दिन
अपनों ने ही पूछ लिया
किया क्या जीवन भर...
वाह गहन रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंश्री मान आपके लेखनी से ज्ञात होता है की हमारे जिला मे भी साहित्य जीवित है।❤️❤️❤️
जवाब देंहटाएंनही जी। वह तो लिखने पढ़ने की आदत है, बस
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