होने और
नहीं होने
के बीच
संषर्ध करती जिंदगी में
होना ही सबकुछ नहीं होता?
नहीं होना भी, बहुत कुछ होता है!
जैसे की,
देह के लिए
सांसों का होना
सबकुछ होता है!
और, सांसों के लिए
देह का होना
कुछ भी नहीं।
प्रेम के लिए केवल
प्रेम का होना सबकुछ होता है,
और नफरत के लिए,
नफरत का होना कुछ भी नहीं।
जीवन में दोनों पहलू
एक दूसरे के पूरक हैं
पर
दोनों का एक साथ
होना, नहीं होता है
और
अधूरी जिंदगी
अनवरत सफर पर चलती रहती है
मुसाफिर की तरह...
बहुत ही खूबसूरत रचना, बधाई
जवाब देंहटाएंनहीं होना भी, बहुत कुछ होता है!... नहीं होना ही करवटें लेता है
जवाब देंहटाएंएक अलग सोच के साथ लिखी गयी ज़िन्दगी की इस कविता को पढ़कर अच्छा लगा अरुण जी..
जवाब देंहटाएंऔर भी खूबसूरत कृतियाँ पढने को उत्सुक हैं..
thanks paratik bhai....
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना है आप की , पंक्तियाँ दिल को छू गयी........
जवाब देंहटाएंbahut sunder......
जवाब देंहटाएंek sach btati chhoti si kavita,,,behad achhhi.
जवाब देंहटाएंनहीं होना भी बहुत कुछ होता है.......
जवाब देंहटाएंएक गहन और सकारात्मक सोच ही इस पंक्ति का सृजन कर सकती है.
स्वाभाविक है, तभी तो दिल को छू गई, वाह !!!