हे भारती देखो तुम,
कैसे अपने ही आज लूट रहे,
कैसे आतंकी धर्मभेष में छूट रहे।
हे भारती देखो तुम,
कैसे, गांधी की टोपी आज लुटेरों के सर पर है,
कैसे आज फांकाकशी भगत सिंह के घर पर है।
हे भारती देखो तुम,
आज कैसे जनता की नहीं है चलती,
देखो, कैसे रक्षक ही अस्मत को मलती।
हे भारती देखो तुम,
कैसे अन्नदाता पेट पकड़ कर सो जाते,
और कहीं पिज्जा खा खा कर कारोबारी नहीं अघाते।
हे भारती देखो तुम
अब गंधारी का ब्रत त्याग करो,
एक बार फिर तुम लक्ष्मीबाई का रूप धरो।
हे भारती देखो तुम,
जब देश की खातीर, एक बुढ़ा करता है उपवास,
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सुंदर रचना......
जवाब देंहटाएं--जिन्दगीं--
बस देखते रहो विनाश की लीला
जवाब देंहटाएं...कमाल की रचना...बधाई...
जवाब देंहटाएंनीरज
हे भारती देखो तुम,
जवाब देंहटाएंजब देश की खातीर, एक बुढ़ा करता है उपवास,
तब सर्वोच्च सदन में बैठे सब करते है उपहास
bahut achchi lagi apki ye kavita.....
बहुत ही अच्छी शब्द रचना ।
जवाब देंहटाएंविनाश काले विपरीत बुद्धि ..
जवाब देंहटाएंhar sabd satya ..aur manthit हे भारती देखो तुम
जवाब देंहटाएंअब गंधारी का ब्रत त्याग करो,
एक बार फिर तुम लक्ष्मीबाई का रूप धरो। bahut sundar ...
देश प्रेम की झलक देती पोस्ट ......पहली बार ब्लॉग पर आना हुआ ,अच्छा ब्लॉग है.... फोलो कर रही हूँ,उम्मीद है आना जाना लगा रहेगा..........
जवाब देंहटाएंReality is hard to digest.
जवाब देंहटाएंहे भारती देखो तुम,
जवाब देंहटाएंकैसे अन्नदाता पेट पकड़ कर सो जाते,
और कहीं पिज्जा खा खा कर कारोबारी नहीं अघाते।
इस विरोधाभास में ही पता नहीं कब तक जीते रहेंगे हम
behad khoobsurat panktiya......
जवाब देंहटाएंkabhi mauka mile to hamare yaha bhi padhariye...
link h..http://likhtepadhte.blogspot.in.