शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

शुन्यता?


(अरूण साथी सुबह सुबह प्याज छिलते हुए)


सबकुछ उघाड़ देना चाहता हूं,
जीवन ने जो दिया उसको,
जीवन ने जो लिया उसको,
स्याह,
सफेद,
निरर्थक,
सार्थक,
लिप्सा,
अभिप्सा,
सबको,
परत दर परत।

जनता हूं,
प्याज की तरह ही होती है जिंदगी,
उघाड़ कर भी अन्ततः मिलेगी
शुन्यता!

शुन्यता?
जहां से आरंभ
और जहां पर अन्त होती है जिंदगी....




विवेकानन्द की जयंती (युवा दिवस) पर मेरे द्वारा खिंची गई एक बोलती तस्वीर...


6 टिप्‍पणियां:

  1. जनता हूं,
    प्याज की तरह ही होती है जिंदगी,
    उघाड़ कर भी अन्ततः मिलेगी
    शुन्यता!...फिर भी तलाश तो होती ही है

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  2. मै आपकी ये रचना कल के चर्चा मंच पे लगा रहा हूँ ....

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  3. आदमी औए ये जिंदगी ... आज दोनों ही प्याज बन के रह गई है ...
    बहुत खूब ...

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