(अरूण साथी सुबह सुबह प्याज छिलते हुए)
सबकुछ उघाड़ देना चाहता हूं,
जीवन ने जो दिया उसको,
जीवन ने जो लिया उसको,
स्याह,
सफेद,
निरर्थक,
सार्थक,
लिप्सा,
अभिप्सा,
सबको,
परत दर परत।
जनता हूं,
प्याज की तरह ही होती है जिंदगी,
उघाड़ कर भी अन्ततः मिलेगी
शुन्यता!
शुन्यता?
जहां से आरंभ
और जहां पर अन्त होती है जिंदगी....
विवेकानन्द की जयंती (युवा दिवस) पर मेरे द्वारा खिंची गई एक बोलती तस्वीर...
शून्य का महत्व अनन्य है
जवाब देंहटाएंजनता हूं,
जवाब देंहटाएंप्याज की तरह ही होती है जिंदगी,
उघाड़ कर भी अन्ततः मिलेगी
शुन्यता!...फिर भी तलाश तो होती ही है
सुन्दर सार्थक पोस्ट, आभार.
हटाएंsarthak abhivaykti.....
जवाब देंहटाएंमै आपकी ये रचना कल के चर्चा मंच पे लगा रहा हूँ ....
जवाब देंहटाएंआदमी औए ये जिंदगी ... आज दोनों ही प्याज बन के रह गई है ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...