वहां, जहां तुम्हें लगे कोई साथ नहीं है
और सबने बना ली है मौन की दीवार
तुम आवाज लगाना...
तब, जब लगे कि यह जुल्म की इम्तहां है
और तुम हो अकेले
एक आवाज लगाना...
नहीं तुम अकेले नहीं होगे
दीवार के उस पर भी
रहते है कुछ जिंदा लोग
जिन तक पहुंचेगी
तुम्हारी आवाज
भले दीवार के उस पार
कोई देख नहीं सकता
पर, सुना तो होगा ही कि
दीवारांे के भी कान होते है
और जब कुछ लोग
होगें तुम्हारे साथ खड़ा
तब तुम पाओगे कि
दीवारों के भी जुबान होते है..
गहन अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात कही है …………बेहद उम्दा।
जवाब देंहटाएंहम्म ...काश दीवारों की भी ज़ुबान होती
जवाब देंहटाएंदीवारें सुनती भी हैं और बोलती भी हैं।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंनई सी बात...पर विचारणीय भी , गहरी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंकुछ अनोखी सोच...
सादर..
सुन्दरम मनोहरं .
जवाब देंहटाएंविश्वास जगाती अभिव्यक्ति ........
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंवाह! क्या खूब लिखा आपने...
जवाब देंहटाएंसादर बधाई
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकल 22/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है !
'' तेरी गाथा तेरा नाम ''
जो कितनी ही कहानियाँ सुनाती रहती है..
जवाब देंहटाएंबच्चों मानवकुल ने अपने
जवाब देंहटाएंकुछ लोग निकाले घर से हैं
बस्ती के बाहर ! जंगल में
कुछ और लोग भी रहते हैं
निर्बल भाई को बहुमत से घर बाहर फेका है हमने
आचरण बालि के जैसा कर क्यों लोग मनाते दीवाली?
अर्थपूर्ण प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंदीवारों के भी जुबान होते है..
जवाब देंहटाएंनया मुहावरा ही नहीं बल्कि एक मजबूत सम्बन्ध का आश्वासन भी दे रही है आपकी रचना
अनुपम प्रयोग!
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंअर्थपूर्ण प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएं