रविवार, 19 फ़रवरी 2012

दीवारों के भी जुबान होते है....


वहां, जहां तुम्हें लगे कोई साथ नहीं है
और सबने बना ली है मौन की दीवार
तुम आवाज लगाना...

तब, जब लगे कि यह जुल्म की इम्तहां है
और तुम हो अकेले
एक आवाज लगाना...

नहीं तुम अकेले नहीं होगे
दीवार के उस पर भी
रहते है कुछ जिंदा लोग
जिन तक पहुंचेगी
तुम्हारी आवाज

भले दीवार के उस पार
कोई देख नहीं सकता
पर, सुना तो होगा ही कि
दीवारांे के भी कान होते है
और जब कुछ लोग
होगें तुम्हारे साथ खड़ा
तब तुम पाओगे कि

दीवारों के भी जुबान होते है..

19 टिप्‍पणियां:

  1. वाह क्या बात कही है …………बेहद उम्दा।

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  2. दीवारें सुनती भी हैं और बोलती भी हैं।
    सुंदर रचना।

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  3. आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  4. नई सी बात...पर विचारणीय भी , गहरी अभिव्यक्ति

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  5. वाह...
    कुछ अनोखी सोच...

    सादर..

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  6. वाह! क्या खूब लिखा आपने...
    सादर बधाई

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  7. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति
    कल 22/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है !
    '' तेरी गाथा तेरा नाम ''

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  8. जो कितनी ही कहानियाँ सुनाती रहती है..

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  9. बच्चों मानवकुल ने अपने
    कुछ लोग निकाले घर से हैं
    बस्ती के बाहर ! जंगल में
    कुछ और लोग भी रहते हैं
    निर्बल भाई को बहुमत से घर बाहर फेका है हमने
    आचरण बालि के जैसा कर क्यों लोग मनाते दीवाली?

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  10. दीवारों के भी जुबान होते है..

    नया मुहावरा ही नहीं बल्कि एक मजबूत सम्बन्ध का आश्वासन भी दे रही है आपकी रचना

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