मंगलवार, 12 जुलाई 2011

जलती जिंदगी


ठीक सूरज के छुपने से पहले
हाथ में लग्गी ले, आया एक सौतार का बेटा
महुआ की दूर भागती टहनियों से कहा
‘‘तुम मेरी भूख से ज्यादा दूर नहीं भाग सकते’’
फिर वह बन गया बंदर
कभी इस डाली
कभी उस डाली
भूख से लड़ते हुए
उसने वामन सा नाप दिया
पूरा ब्रहमांड
अपने जीवन को लगाकर दांव पर
उसने पाया
एक गठरी सूखी लकड़ी
घर की ओर जाते
वह गुनगुना रहा है!
वह खुश है
आज फिर वह भूखा नहीं सोएगा......

15 टिप्‍पणियां:

  1. मार्मिक. सौतार के बेटे की भूख जग को दिखती कहाँ हैं!

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  2. उसकी खुशी देख मन को अजब सा सुकून मिला..मर्मस्पर्शी रचना

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  3. मन को छू जाने वाली रचना जिसने मुग्ध और निशब्द कर दिया......

    सोच और लेखन ,दोनों प्रणम्य...

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  4. भूख से लड़ते हुए
    उसने वामन सा नाप दिया
    पूरा ब्रहमांड

    यह प्रतीक बहुत पसंद आया।
    कविता के कथ्य में नवीनता अच्छी लगी।

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  5. सटीक ... सच है भूख ही तो है जो सुख चैन और मस्ती देती है .. मार्मिक रचना ...

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  6. दिल की गहराईयों को छूने वाली बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  7. आआज की आपा धापी इसी एक वल्क्त की भूख के लिये ही तो है।क्या नही करता कोई भूख के लिये। मार्मिक रचना।

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  8. अरुण साथी जी हार्दिक अभिवादन -मन को छू जाने वाली निम्न पंक्तियाँ -भूख न जाने क्या क्या करा देती है -कौन समझता है इस बड़े दर्द को आज ..न हम न सरकार .
    सुन्दर भाव -बधाई
    शुक्ल भ्रमर ५
    भ्रमर का दर्द और दर्पण
    अपने जीवन को लगाकर दांव पर
    उसने पाया
    एक गठरी सूखी लकड़ी
    घर की ओर जाते
    वह गुनगुना रहा है!
    वह खुश है
    आज फिर वह भूखा नहीं सोएगा

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  9. .

    Beautiful presentation Arun ji ! After a stage the person behaves in the same way as expressed in the poem....

    भूख से लड़ते हुए
    उसने वामन सा नाप दिया
    पूरा ब्रहमांड...

    .

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