जब अन्ना ने लिया संकल्प
लोकतंत्र को बचाने का
जन लोकपाल लाने का
और
भ्रष्टाचार मिटाने का
तब
पूरा देश अन्ना के साथ
खड़ा हो गया।
किसी ने कहा
लौट आये गांधी
किसी ने कहा
आई आंधी
तुमने भी बुराई के विरूद्ध उठाया हाथ
अन्ना का दिया का दिया साथ।
पर
रूको
और मुठ्ठी भींच लो
दुनीया की छोड़ो
अपनी सीमा रेखा खींच लो
भ्रष्टाचार नहीं करेगें
भ्रष्टाचार नहीं सहेगें
फिर सफल होगें अन्ना
पूरा होगा गांधी का सपना...
पर
जवाब देंहटाएंरूको
और मुठ्ठी भींच लो
दुनीया की छोड़ो
अपनी सीमा रेखा खींच लो
........................
बहुत सुन्दर कविता और ये पंक्तिया इस कविता का ह्रदय लगती हैं..
हमें अपनी सीमा रेखा खीचनी होगी...खुद में बदलाव लाये बिना सम्पूर्ण क्रांति संभव नहीं है..
सुंदर अभिव्यक्ति। आभार।
जवाब देंहटाएंसच है! ना रिश्वत दो ना लो! और वोट ध्यान से दो ना कि पैसा लेकर या फिर जाति के आधार पर!
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
हर तरफ अन्ना ही अन्ना छाए हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना....
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंपर
रूको
और मुठ्ठी भींच लो
दुनीया की छोड़ो
अपनी सीमा रेखा खींच लो..
Well said ! Charity begins from home.
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बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंसच कहा है ... जब तक खुद हम नही जागेंगे तब तक सवेरा नही होगा ...
जवाब देंहटाएंwaah.......achhi kavita
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