कभी कभी मैं भी झेंप जाता हूं,
जब, मित्र के पत्तल से
उठा कर मिठाई
अपने पत्तल में डाल लेता हूं
और लोग चौक कर अचरज से
मेरी ओर देखने लगते हैं।
तब, जब मित्र अपने हिस्से की
आधी से अधिक चाय
मेरे कप में उड़ेल देते हैं
और तब भी,
जब कभी कभी
मित्र संकोचवश
खाने लगते है मिठाई
और मैं छीन लेता हूँ
झप्पटा मार कर...
लोग मेरी अशिष्टता पर हंसते हैं।
परवाह नहीं, लोग क्या सोंचते होगें...
पर एक डायबिटिक मित्र की मिठासा छीनना
मुझे सौ जन्मों की खुशी दे जाती है....
बहुत खूब ... दोस्ती इसी का नाम है ...
जवाब देंहटाएंखाने पीने में कैसी झिझक?
जवाब देंहटाएंएक अलग ही भाव-संसार में ले जाती सुंदर कविता !
जवाब देंहटाएंयह यों ही नहीं है कि अक्सर पत्नियां, मित्रों के बीच रहने की शिकायत करती दिखती हैं।
जवाब देंहटाएंदोस्ती का भाव ...सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंTrue friends are always very close. They care for each other, no matter what others think. Very nice poem.
जवाब देंहटाएंसही कथन....सुंदर कथन...
जवाब देंहटाएंमन का मीत वही बन् पाए
जियरा से जियरा जुड जाए |
सुंदर भाव..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता.
वाह...यही तो सच्ची मित्रता है...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
ऐसे मित्र कहाँ मिलते हैं...बच के रहना बचा के रखना !
जवाब देंहटाएंपर एक डायबिटिक मित्र की मिठासा छीनना
जवाब देंहटाएंमुझे सौ जन्मों की खुशी दे जाती है....dost ho to aisa
यही तो सच्ची मित्रता है........
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया अक्सर यह गलतियाँ मैं भी करता रहता हूँ !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
achche shubhchintak to aise hi hote hain.....
जवाब देंहटाएं♥
जवाब देंहटाएंलोग बिना जाने कुछ का कुछ समझ लेते हैं …
अच्छी कविता है …
आपको नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
हृदयस्पर्शी रचना
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