सोमवार, 16 मई 2011

अपनी अपनी सुबह

सुबह सबका अपना अपना होता है 
और उसका सुख भी तभी,
सूरज उगने से पहले रोप देते है
सभी अपनी अपनी खुशी।
 
मैया की सुबह  
सीता-राम के साथ होती है 
और कानों में गुंजती है 
घंटी की टन टन।
 
बीबी की सुबह 
चाय की उस प्याली के साथ होती है 
जिसकी गर्म प्याली 
जब उंगली को छूती है 
तब चौंक और चिढ़ कर जगता हूं मैं। 

बाबू जी की सुबह 
गाय-बछिया 
गोबर-गौंत 
और  
हरियरी के साथ साथ  
दुनिया भर की चिंताओं के साथ होती है।


मेरी सुबह  
कोयल की कूहू कूहू 
बगैचा में पेंड़ों के गीत 
या फिर रास्ते में मिले  
सियार को देख ठीठक कर होती है।  
मैं तो अपनी सुबह का कोना अपने पास रखता हंू


आपको अपनी सुबह मुबारक..............

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपने बहुत ठीक पकड़ा है सुबह की अपनी अपनी खुशियों को ! अच्छी रचना के लिए के लिए बधाई !!

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  2. मैं तो अपनी सुबह का कोना अपने पास रखता हंू
    kya baat hai......bahot sunder.

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  3. सच कहा है .... हास किसी की अपनी अपनी सुबह होती है ....

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  4. मैं तो अपनी सुबह का कोना अपने पास रखता हंू
    ..babut khoob!!

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  5. मेरी सुबह तो सुबह तो योग के साथ शुरू होती है .............बढ़िया प्रस्तुति

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  6. बहुत खूब लिखा है आपने....सुंदर भाव

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  7. आप इतनी उम्दा कविता भी लिखते हैं , मालूम न था। आनंद आ गया।

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