बुढ़े बरगद के नीचे
उस रात जब मैं तुम्हारी
आगोश में था
सर्दी की वह रात बहुत गर्म थी।
तुम्हारे आलिंगन का वह
नैसर्गिक आनन्द
कोहरे की उस रात में
पसीने की शक्ल में छलक उठा था।
उस रात की सुबह
हम दोनों
आसमान में
डूब-उतर रहे थे
जैसे
हंसा ने चुग लिया हो
मोती.............
उस रात जब मैं तुम्हारी
आगोश में था
सर्दी की वह रात बहुत गर्म थी।
तुम्हारे इन्कार में छुपे इकरार को
मैंने समझा तुम्हारे आलिंगन का वह
नैसर्गिक आनन्द
कोहरे की उस रात में
पसीने की शक्ल में छलक उठा था।
उस रात की सुबह
हम दोनों
आसमान में
डूब-उतर रहे थे
जैसे
हंसा ने चुग लिया हो
मोती.............
हम दोनों
जवाब देंहटाएंआसमान में
डूब-उतर रहे थे
जैसे
हंसा ने चुग लिया हो
मोती.............
बहुत सुंदर प्रयोग। बिम्ब और प्रतीक बहुत सुंदर लगे।
बहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंसर्दी की वह रात बहुत गर्म थी।---वाह!!! इक आगोश की गर्मी...बेहतरीन अरुण भाई..बधाई इस रचना के लिए.
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