रविवार, 8 मई 2011

बुढ़ा बरगद

बुढ़े बरगद के नीचे
उस रात जब मैं तुम्हारी
आगोश में था 
सर्दी की वह रात बहुत गर्म थी। 
तुम्हारे इन्कार में छुपे इकरार को 
मैंने समझा 
तुम्हारे आलिंगन का वह 
नैसर्गिक आनन्द 
कोहरे की उस रात में
पसीने की शक्ल में छलक उठा था। 
उस रात की सुबह 
हम दोनों 
आसमान में
डूब-उतर रहे थे
जैसे 
हंसा ने चुग लिया हो
मोती.............




3 टिप्‍पणियां:

  1. हम दोनों
    आसमान में
    डूब-उतर रहे थे
    जैसे
    हंसा ने चुग लिया हो
    मोती.............
    बहुत सुंदर प्रयोग। बिम्ब और प्रतीक बहुत सुंदर लगे।

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  2. सर्दी की वह रात बहुत गर्म थी।---वाह!!! इक आगोश की गर्मी...बेहतरीन अरुण भाई..बधाई इस रचना के लिए.

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