मरना कौन चाहता है?
किसे अच्छा लगता है
जीना, बनकर एक लाश।
करने से पहले आत्महत्या,
करना पड़ता है संधर्ष,
खुद से।
पर पाने से पहले
रेशमी दुनिया,
खौलते पानी में डाल देते है
कोकुन में बंद जमीर को।
महत्वाकांक्षा
परस्थिति
समय और
काल
के तर्क जाल में उलझ
आदमी
मारकर जमीर को
कर लेता है आत्महत्या,
और फिर
अपने ही शव को
कंधे पर उठाये
जीता रहता है
फोटो - साभार- गूगल....
मार्मिक, काश हम जीना-जिलाना सीख पाते! कहाँ छिपी है संजीवनी विद्या?
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव लिए रचना |
जवाब देंहटाएंबधाई
आशा
कंधे पर उठाये शव को भी जीने की कला आ जाती तो दुनिया इतनी उबाऊ नहीं होती..
जवाब देंहटाएंआपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । बहुत ही अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट "उपेंद्र नाथ अश्क" पर आपकी सादर उपस्थिति प्रार्थनीय है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंकरने से पहले आत्महत्या,
जवाब देंहटाएंकरना पड़ता है संधर्ष,
खुद से।... आत्महत्या आसान नहीं . लोग कहते हैं इसे कायरता - पर उत्तेजना की स्थिति हो या डूबते मन की स्थिति , यह आसान नहीं
pahli bar apke blog par aana hua aur sarthak raha apko padhna. saty kahti rachna.
जवाब देंहटाएंbahut sundar pravishti hai .... badhai ke sath hi abhar.
जवाब देंहटाएं"टिप्स हिंदी में" ब्लॉग की तरफ से आपको नए साल के आगमन पर शुभ कामनाएं |
जवाब देंहटाएंटिप्स हिंदी में
http://urvija.parikalpnaa.com/2011/12/blog-post_31.html
जवाब देंहटाएंआत्महत्या ...झंझोर दिया एक तो..बढिया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनए साल की हार्दिक शुभकामनाएँ
.नववर्ष की शुभकामनायें.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, मार्मिक भाव लिए रचना,....
जवाब देंहटाएंनया साल सुखद एवं मंगलमय हो,..
आपके जीवन को प्रेम एवं विश्वास से महकाता रहे,
मेरी नई पोस्ट --"नये साल की खुशी मनाएं"--