शनिवार, 24 दिसंबर 2011

मैं आत्म हत्या नहीं करना चाहता हूं?



मरना कौन चाहता है?
किसे अच्छा लगता है
जीना, बनकर एक लाश।

करने से पहले आत्महत्या,
करना पड़ता है संधर्ष,
खुद से।

पर पाने से पहले
रेशमी दुनिया,
खौलते पानी में डाल देते है
कोकुन में बंद जमीर को।

महत्वाकांक्षा
परस्थिति
समय और
काल
के तर्क जाल में उलझ
आदमी
मारकर जमीर को
कर लेता है आत्महत्या,
और फिर
अपने ही शव को
कंधे पर उठाये
जीता रहता है
ता उम्र....


फोटो - साभार- गूगल....

13 टिप्‍पणियां:

  1. मार्मिक, काश हम जीना-जिलाना सीख पाते! कहाँ छिपी है संजीवनी विद्या?

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  3. बहुत सुन्दर भाव लिए रचना |
    बधाई
    आशा

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  4. कंधे पर उठाये शव को भी जीने की कला आ जाती तो दुनिया इतनी उबाऊ नहीं होती..

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  5. आपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । बहुत ही अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट "उपेंद्र नाथ अश्क" पर आपकी सादर उपस्थिति प्रार्थनीय है । धन्यवाद ।

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  6. करने से पहले आत्महत्या,
    करना पड़ता है संधर्ष,
    खुद से।... आत्महत्या आसान नहीं . लोग कहते हैं इसे कायरता - पर उत्तेजना की स्थिति हो या डूबते मन की स्थिति , यह आसान नहीं

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  7. आत्महत्या ...झंझोर दिया एक तो..बढिया प्रस्तुति



    नए साल की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  8. बहुत सुंदर, मार्मिक भाव लिए रचना,....
    नया साल सुखद एवं मंगलमय हो,..
    आपके जीवन को प्रेम एवं विश्वास से महकाता रहे,

    मेरी नई पोस्ट --"नये साल की खुशी मनाएं"--

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