साथी
शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010
पिता
संघषोंZ के विभिन्न आयामों में
कोई प्रेरित करता है
चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए
चोट खा कर गिरे अस्तित्व को
सम्भालाता है
धीरे से पकड़ाता है अपनी अंगुली
सिखलाता है चलना
नई राहों पर
और फिर
जब दौड़ पड़ता हूं
तो बादलों की ओट से मुस्कुराता है.....
1 टिप्पणी:
रंजन
13 फ़रवरी 2010 को 7:53 pm बजे
बहुत सुन्दर...
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