प्रियतम तुम हो
सुबह का सूरज
जिसकी आभा से खिलता रहै
जीवन का फुल
सावन की मादक बून्द
जिसके स्पशZ से
भींग जाता है
अन्र्तमन।
पुरबा बयार
जो सांसों में आविष्ट हो
तृषित जीवन को करती है
तृप्त।
अन्तत:
तुम हो तो है
जीने की सार्थकता
और
मृत्यु के आलिंगन का आन्नद भी.....
बहुत से गहरे एहसास लिए है आपकी रचना ...
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