शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

प्रेम

प्रेम

जब भी तुम कहीं होती हो,
मुझे कोई बता जाता है।
जब भी कोई फुल मुस्कुराता है
तुम्हारी याद दिला जाता है।
जेठ की दोपहर में
बरगद की छांव तले
बैठा था मैं
कोई बता गया तुम आ रही हो।
तुम रूठ गई हो किसी बात से शायद,
तुम्हारा प्रेम ही तो है रूठना भी कोई कह रहा है।
खलीहान में
धान की बालियों की चुभन ने बताया
तुम यहीं कहीं हो आस पास,
देखा दूर तुम चली आ रही हो।                                                  

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