वह भी आदमी ही हैअरुण साथीहम जहां है, वहीं से हीहमे नीचे देख लेना चाहिएइसलिए नहीं है कियह कोई अनिवार्य शर्त हैबल्कि इसलिए कीनीचे देख लेने भर से हीहमे ठोकर लगने की संभावनाकम हो जाती हैऔर इसलिए भी कीनीचे देखने भर से हीहम देख पाते हैबगैर नीचे देख करचलनेवालें चोटिल हुएआदमी को...और इसलिए भी किजब हम, जहां हैंवहां से नीचे देखते हैंतो सिर्फ अपनी आंखों से हीनहीं देखना चाहिएहमें अपनीसंवेदनाओं में उतर करभी देख लेना चाहिए..और इस तरहदेखने पर ही दिखेगाकि मंदिरों के बाहरएक रोटी के लिएतरसता आदमी जैसा एक भिक्षुक भी आदमी ही हैतब कहीं दिखेगाकि बगैर हाथ-पैर कालोथड़ा जैसा दिखने वालावह आदमी भीआदमी ही हैऔर दिखेगा यह भी किहाड़तोड़ मेहनत करतावह मजदूर जैसा आदमी भीएक आदमी ही हैऔर तब हमछोड़ देगेंईश्वर से हर बात को लेकरशिकायत करना...
साथी
शुक्रवार, 18 अगस्त 2023
वह भी आदमी ही है
सोमवार, 26 जून 2023
आसन नहीं है पिता होना
आसन नहीं है पिता होना
कहां आसान है
किसी के लिए
पिता होना
और
आसान कहां है
पिता के लिए
कुछ भी,
यहां तक की रोना भी
कहां रो पाता है पिता
दर्द में, खुल कर अक्सर
कभी कभी जब टूटता है अंदर से
तो रोता है अंदर ही अंदर
और फिर हंसना तो
जैसे पिता के लिए
और भी आसान नहीं
मुश्किलों से लड़ते लड़ते
खुलकर हंसे तो
पिता के लिए
युग हो जाता है
कभी कभी हंस लेता है
पिता,
कठ्ठ हंसी
जैसे कुछ छुपा रखा हो
अपने अंदर
अब कहां आसान है
मुश्किलों से लड़ते
पिता के लिए
सांस तक भी लेना...
बुधवार, 21 जून 2023
मन की बात
मन की बात
(अपने 50वें जन्म दिन पर (कल) लिखी कविता)
आज तक
जीवन को सार्थक
कर न पाया
नैतिकता की
कसौटी पर
जिसे खरा पाया
उसी के साथ
पग बढ़ाया
लड़खड़ाया
गिरा, संभला
उठा ,चला
जीवन भर
खुद को
यात्री ही पाया
बहुत लोगों
से मिला
बहुत कम
से जुड़ पाया
जिससे जुड़ा
उसका अपनत्व
भाया
इस अकिंचन को
सबने अपनाया
इसी यात्रा में
विषधर
आस्तीन में समाया
कुछ ने विष वमन की
कुछ का विष पचाया
कुछ प्रपंची ने
करने को वध
चक्रव्यूह रचाया
बेसहारा हो
सातवें चक्र में
अभिमन्यु की तरह
खेत आया
चरैवेति चरैवेति
जीवन का मंत्र बनाया
सब कुछ के बाद भी
जीवन को सार्थक
कर न पाया....
सोमवार, 12 जून 2023
मौत से निदंद
जाने क्यों
अब मरने से
डर लगता है
पर जब भी
डरता हूँ
तब
कई तर्क वितर्क
मन को
मथने लगतें है
एक मन कहता है
जिसकी मौत
सुनिश्चित नहीं
उसे कौन
मार सकता है
दूसरा कहता है
जिसकी मौत
सुनिश्चित है
उसे कौन
बचा सकता है..
और बस
मैं, निदंद हो जाता हूं..
लेबल:
(काव्य),
hundi kavita,
kavita,
maut se dar
रविवार, 4 जून 2023
लाशों के सौदागर
लाशों के सौदागर
दुर्घटनाग्रस्त
रेल गाड़ी हुई
सैकड़ों लोग की जान गई
चीत्कार उठा भारत
पर उनकी बांछे
खिल उठी
उनका कुनवा
खिलखिला उठा
देश के प्रधान
की छाती पर
रख कर पैर, पूछ रहे वे
बता, कौन है जिम्मेवार
सोच रही माता भारती
उनके बच्चों की मौत पर
किस तरह से करते है ये
लाशों का भी कारोबार...
रविवार, 8 जनवरी 2023
ठोकर
ठोकर
1
वह जा रहा था
सामान्य गति से
अचानक से
रास्ते में ठोकर लगी
वह गिर गया
वह चोटिल हुआ
पैर में जख्म लगे
रक्त बहा
आंसू बहे
आसपास के लोग
सहानुभूति में देखने लगे
एक-दो ने मदद में हाथ
भी बढ़ाया
2
वह आहिस्ते से मुस्कुराया
कपड़े से धूल-गर्दा
साफ किया
फिर उठ खड़ा हुआ
और चलने लगा
वह एक बच्चा था..
शनिवार, 1 अक्तूबर 2022
बापू
बापू
(अरुण साथी)
सर्व धर्म समभाव
सत्य और अहिंसा
उनकी विचारधारा
के विपरीत शब्द थे
उन्होंने बापू को
गोली मार दी
पर बापू नहीं मरे
न ही उनके शब्द मरे
उस दिन से लेकर
आज तक, निरंतर
वे बापू को मारना चाहते है
उन्हें नहीं पता, जो अमर हैं
उन्हें कोई नहीं मार सकता...
शुक्रवार, 30 सितंबर 2022
ईरान
ईरान
(अरुण साथी)
एक दिन उठ खड़ी होगी बेटी
हर उस घर, गांव,
समाज और देश से
जहां उसके मनुष्य
होने पर सवाल
उठेगा
वहां से भी
उठ खड़ी होगी बेटी
जहां
बेटी का जीवन
उसका अपना नहीं होगा
वहां से भी जहां
बेटी के लिए सजा
रखें है सोने के पिजड़े
वहां भी जहां
तय करेगा आदमी
एक स्त्री के
सांसों के नियम
और जला लेगी बेटी
बुर्खा,
काट लेगी बेटी
चोटी..
और टांग देगी
मर्दों की
तथाकथित मर्दानगी
उसके अपने ही
लंगोट में...
शनिवार, 17 सितंबर 2022
साहेब का चीता
1
साहेब,
आयातित चीतों को लाने में,
करोड़ों बहाते हैं।
जहाज सजाते हैं।
दिखावा करवाते हैं।
जनता की गाढ़ी कमाई को,
हवा में उड़ उड़ाते हैं..!
गोदी में बैठने वाले,
गुणगान भी गाते है।
नहीं अघाते है।
2
साहेब,
लोक कल्याणकारी वाले
लोक के तंत्र के राजा को
निम्मक चटा कर
मुफ्त खोर भी बताते हैं..!!
लेबल:
चीता,
नामीबिया से चीता,
chheta,
modi cheeta
रविवार, 10 जुलाई 2022
शुक्रवार, 8 जुलाई 2022
पराया धन
पराया धन
***
जब से
कन्यादान में
शंख पानी ढार
बेटी को पराया
धन बताया जाने लगा
तभी से
पराया धन को
निर्लज्जता से
जलाया जाने लगा...
लेबल:
कन्या दान,
पराया धन,
बेटी,
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
सोमवार, 4 जुलाई 2022
शनिवार, 19 फ़रवरी 2022
समय की सीख
समय की सीख
(अरूण साथी)
समय से सीखा है
समय के विपरीत होते ही
कलेजे को पत्थर का करना
तेज ज्वारभाटा के बीच
नाव की पतवार समर्पित कर
धार में चुपचाप बहना
सीखा है यह भी कि
जब चारो ओर हो
धुप्प अंधेरा
तो अपने अंदर
को रौशन करना
जिनको शोर करने की
आदत है वे जाने
हमने सीखा
कर्मों से
सच को सच
स्थापित करना
रविवार, 30 जनवरी 2022
सृजक
एक मुठ्ठी काली मिट्टी
एक मुठ्ठी सफेद
एक मुठ्ठी दोमट
एक मुट्ठी बलुआही
खेतों की हरियाली
समुंदर की एक
सफेद बून्द
और
अरुणाचल से
एक मुट्ठी
लालिमा
लेकर
गढ़ना चाहता हूँ
माँ भारती को
तब
जबकि
कई लोग
अपने अपने
रंग से
रंग देना चाहते है
माँ भारती को
कोई हरा
कोई सफेद
कोई केसरिया
कोई लाल
और
कोई कोई
स्याह....भी..
शनिवार, 25 दिसंबर 2021
शैतान की उदासी
शैतान की उदासी
(अरुण साथी)
1
उन्होंने कहा
शैतान हो तुम
आदमखोर
रक्तपिपासु
धर्म के नाम पर
बंदे का कत्लेआम
हैवानियत है
तुम्हारा काम
इंसानियत ने उसे
हैवान-हैवान
शैतान-शैतान
पुकारा
शैतान उदास हो गया....
2
अब वे उसी के
जैसे हो गए
वे कहते हैं
तुम शैतान
मैं भी शैतान
तुम हैवान
मैं भी हैवान
अब शैतान प्रसन्न हो गया...
शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2021
दलित सवर्णों से पहले मंदिर में करते हैं प्रवेश, होता है प्रतीकात्मक युद्ध
दलित सवर्णों से पहले मंदिर में करते हैं प्रवेश, होता है प्रतीकात्मक युद्ध
सवर्णों और दलितों के बीच भेदभाव, छुआछूत, शोषण, दमन के किससे से हटकर एक सकारात्मक यथार्थ की दूसरी क़िस्त। हालांकि इस तरह के यथार्थ को ना तो सोशल मीडिया पर ज्यादा उछाल मिलेगा, ना ही बड़े बड़े मीडिया घराने इस को महत्व देंगे। ऐसी बात नहीं है कि सकारात्मक बातें नहीं है पर समाज में घृणा को बढ़ाने के मामले अधिक मिलते हैं। ऐसी बात नहीं होती तो बिहार केसरी डॉक्टर श्री कृष्ण सिंह, ब्राह्मणों और पंडितों से लड़कर मुख्यमंत्री रहते हुए देवघर के मंदिर में दलितों के प्रवेश को लेकर इतना संघर्ष नहीं करते। समाज को दलितों से भेदभाव, छुआछूत मिटाने के लिए संदेश नहीं देते।
खुशी-खुशी सवर्ण दलितों से पराजय को स्वीकार करते हैं। खुशी खुशी उन्हें सबसे पहले मंदिर में प्रवेश करने दिया जाता है। खुशी-खुशी जब दलित मंदिर में पूजा कर लेते हैं तब सवर्णों की पूजा शुरु होती है।
शेखपुरा जिले में यह मामला मेहुस गांव में भी देखने को मिलता है। यह भूमिहार बहुल गांव है। यहां माता माहेश्वरी का सिद्धि पीठ है। जहां नवमी के दिन भूमिहार और दलितों के बीच प्रतीकात्मक युद्ध होता है। इस युद्ध में भूमिहार समाज के लोग रावण की सेना बनते हैं और दलित समाज के लोग राम की सेना बनते हैं ।
दोनों के बीच नवमी के दिन प्रतीकात्मक युद्ध होता है । इस युद्ध में भूमिहार समाज के लोग दलितों को मंदिर में प्रवेश करने से रोकते हैं। दोनों सेना में युद्ध होती है और भूमिहार समाज के लोग इसमें खुशी खुशी हार जाते हैं। और फिर दलित मंदिर में खुशी खुशी प्रवेश करते हैं। जिसके बाद सभी तरह की पूजा गांव में शुरू होती है।
यह परंपरा कई सदियों पुरानी है। ग्रामीण अंजेश कुमार कहते हैं कि इस परंपरा के कई मायने हैं। रावण और राम के युद्ध के बहाने दलित समाज को सम्मान देने और आपसी भेदभाव मिटाने को लेकर यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है। दलित समाज के लोग पहले मंदिर में प्रवेश करते हैं तभी मंदिर में किसी तरह की पूजा पाठ शुरू होती है। दलितों के मंदिर में प्रवेश की रोक को लेकर देश दुनिया में कई चर्चाएं हैं परंतु यहां माता महेश्वरी के मंदिर में दलित ही पहले मंदिर में प्रवेश करते हैं। प्रतीकात्मक युद्ध होता है। भूमिहार की हार होती है।और दलित मंदिर में प्रवेश कर पूजा का शुभारंभ करते हैं। भाईचारा और सामंजस्य का यह एक अनूठी मिसाल है जो देश में कहीं नहीं मिलेगी।
गुरुवार, 7 अक्तूबर 2021
हे दुर्गे
हे दुर्गे
***
नवरात्र में
पुरुषों के मन में
नारी के लिए
कितना सम्मान है..?
कहीं पूजा
कहीं हवन
कहीं पाठ
कहीं उपवास
कहीं अनुष्ठान है..!
हे माँ दुर्गे
बताओ
कोख में मरती बेटी
दहेज हेतु जलती बहू
आबरू लूट कर
अट्टहास करने वाला
कहाँ रहता वह शैतान है...?
सोमवार, 30 अगस्त 2021
भगवान होने के लिए..
#भगवान
कैदखाने में
माँ देवकी
मौत के आगोश में
जिसे जन्म दिया
वही कृष्ण है
माता यशोदा
का प्यार और
कभी कालिया नाग
तो कभी राक्षसी
से जो बच पाया
वही कृष्ण है
माखन चुराया
गैया चराई
सुदामा का
चबेना खाया
और द्वारिकापुरी में
सुदामा को गले लगाया
वही तो कृष्ण है
राधा का प्रेम मिला
और राधा जिसे न मिली
वही तो कृष्ण है
परमेश्वर होकर भी
जिसे परमेश्वर होने है
अभिमान न आया
वही तो कृष्ण है
जिसे
भगवान होने के लिए
कृष्ण होना पड़ता है
वही तो कृष्ण है...
(तस्वीर बेटी प्रति राजनंदनी की बनाई हुई)
शनिवार, 17 जुलाई 2021
दानिश
दानिश
उसकी कानों को
सच सुनने की आदत नहीं है
न ही उसकी आँखों को
सच देखना अच्छा लगता है
फिर कैसे वह दानिश को पसंद करता
उसकी तस्वीरों से उठती चीत्कार से
कांप जाए करेजा कसाई का भी
फिर उसका करेजा भी लरजता होगा
पूछते है सभी, दानिश को
आखिर मारा किसने
आखिर कुछ लोग मौन क्यों है
और कुछ लोग कठहंसी कर रहे
सुनों,
दानिश को उसीने मारा
जिससे वह लड़ रहा था
तालिबानी,
इधर के हों
या उधर के
फर्क क्या पड़ता है...
मंगलवार, 1 जून 2021
एक गांव-अनेक गांव
हर गांव में बसते हैं कई गांव
एक गांव में एक गांव अमीरों का होता है
एक गांव में दूसरा गांव गरीबों का होता है
गरीबों के गांव में भी अमीर बसते हैं
और अमीरों के गांव में भी गरीब बसते हैं
हर गांव में अमीर शोषक होते हैं
और गरीब शोषित
आप इसे जातियों में भी खंडित कर देखिए
मैं इसे वर्ग संघर्ष के रूप में देखता हूं
शनिवार, 29 मई 2021
अनुत्तरित
अनुत्तरित
--
खुद ही भट्ठी बनाई
भाथी भी खुद ही बनाया
खुद ही कोयले सजाए
धीरे-धीरे भाथी से हवा दी
आग सुलगाई
फिर खुद ही खुद को
झोंक दिया
लहलह लहकती भट्ठी में
फिर खुद ही छेनी-हथौड़ा ले
काट-पीट कर
औजार बनाए
कभी हंसुआ
कभी हथौड़ा
कभी खुरपी
कभी हल
कभी कलम
कभी-कभी तलवार भी
फिर एक दिन
अपनों ने ही पूछ लिया
किया क्या जीवन भर...
सोमवार, 24 मई 2021
घर-वापसी
दरवाजे खिड़कियां
खुली रखी थी हमेशा
हर कोई आ-जा सकता था
बेरोकटोक
हवाओं की तरह
दृश्य-अदृश्य
स्पृह-अस्पृह
न जाली, न पर्दे, न शीशे
सब कुछ खुला खुला
एक दिन अचानक
मृत्यु ने दस्तक दी
कहा, चलो
चौंक गया
यह क्या
ना शोर, न शराबा
ना विरोध, न प्रतिरोध
यह कैसे
कहा- घर वापसी
रविवार, 28 मार्च 2021
होलिका में कौन जला..
जब भी होलिका को
जलते हुए देखोगे
तो वहां होलिका को
जलते हुए मत देखना
यह देखना कि कैसे
आज भी हिरण्यकश्यप
स्वघोषित ईश्वर कहलाता है
कैसे वह
अपने ही पुत्र के लिए
चिता सजाता है
कैसे आग से नहीं
जलने वाली होलिका को
उसमें बैठाता है
कैसे होलिका जल जाती है
प्रह्लाद बाहर निकल आता है
और सुनो
यह भी देखना कि
उसमें हम ही तो नहीं जल रहे हैं..
जोगीरा
1
बेच दिए रेल
बेच दिए जहाज
बेच कर रोजगार
साहेब बने बन्दनवाज
जोगीरा सारा रा रा
2
खरीद लिए कैमरा
खरीद लिए कलम
अब तो चारणी कर
चौथे पौव्वा कर रहा रस्म
जोगीरा सारा रा रा
3
रो रहे किसान
रोये नौजवान
रो रही है धरती माता
हँस रहे भक्तजन महान
जोगीरा सारा रा रा
***
लाल रंग नियर लहराये जिनगी,
हरियर-हरियर हो घर परिवार!
सतरंगी हो मन का आंगन,
इंद्रधनुष हो ई संसार!!
स्नेह लुटाहो सब जन मिलके,
बग बग उज्जर हो मन के द्वार!
बैर मिटाहो जात-धरम के,
खुशियाँ बाँटहो अपरंपार!!
होली के हार्दिक शुभकामनाएं!!
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