साथी
बुधवार, 2 दिसंबर 2020
कट्टरपंथी
शनिवार, 14 नवंबर 2020
#दीया और #आदमी
शुक्रवार, 21 अगस्त 2020
देवदासी
गुरुवार, 20 अगस्त 2020
शनिवार, 11 अप्रैल 2020
लाक्षागृह
रविवार, 8 मार्च 2020
मरकर जीना..अच्छा होता है..
गुरुवार, 5 मार्च 2020
लाशखोर कौन..?
गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020
दंगाई
शुक्रवार, 10 जनवरी 2020
प्रेम मत मांगों
बुधवार, 25 दिसंबर 2019
सुनो जिंदगी
शनिवार, 7 दिसंबर 2019
स्त्री एक देह है
मंगलवार, 17 सितंबर 2019
तितलियाँ
तितलियाँ
(अरुण साथी)
सबसे पहले कैद की
गयी होंगी
तितलियाँ!
फेंका गया होगा जाल
छटपटाई भी होंगी
तितलियाँ!
फिर कैद से उन्मुक्त होने
अपने पंखों को
फड़फड़ाई भी होंगीं
तितलियाँ!
फिर उत्कट आकांक्षा में
तोड़ दिए गए होंगे उनके पंख
तो रोई भी होंगी
तितलियाँ!
फिर लोकतंत्र के मसीहा
ने आकर मुक्त किया
और आह्लाद से दिग दिगंत
जयकार हुआ
तो क्या इस राजनीति को
समझ भी पायीं होंगी
तितलियाँ....
गुरुवार, 5 सितंबर 2019
सुनो प्रेम
सुनो प्रेम
अरुण साथी
सुनो प्रेम
अब तुम इस
पार मत आना
चाँद के उस पार
ही अपना घर बसाना
इस पार तो अब
बसेरा है नफरत का..
सुनो प्रेम
इस पार कहीं
धर्म तो कहीं जाति
और कहीं कहीं
औकात से तुम्हें
तौला जाता है
और कहीं तो
प्रेम लव जिहाद
भी हो जाता है..
फिर क्या
आदमी
आदमी को
अब यहाँ भून
के खाता है..
शुक्रवार, 23 अगस्त 2019
रविवार, 23 जून 2019
अहंकार
अहंकार
रोकता है
टोकता है
ठोकता है
जकड़ता है
पकड़ता है
कभी खुद से
कभी गैरों से
लड़ाता है
लड़ता है
यह अहंकार ही है
जो आदमी को
गिरने के लिए
क्या क्या जतन
नहीं करता है...
शुक्रवार, 9 नवंबर 2018
तेज का प्रताप और तलाक
धर्मपत्नी जी को
सुबह सुबह
गुड न्यूज़
सुनाया..
कहा,
तेज ने प्रताप दिखाया
तलाक की अर्जी लगाया
ऐश्वर्या जैसी वीबी को भी
पाँच माह झेल न पाया
मैं तो पिछले पच्चीस साल से
तुम्हारी जैसी को झेल रहा हूँ
आम आदमी हूँ,
इसीलिए तो
आग से खेल रहा हूँ
वीबी बड़ी प्यार से बोली
सुनो पति देव
पर नारी प्रिय तो
हर पति होता है!
गर्लफ्रेण्ड रहते
कुरूपा भी ऐश्वर्या
होती है,
और
वीबी बनते ही
ऐश्वर्या भी
कुरूपा हो जाती है!
मर्दों के दिमाग में ही
कोई केमिकल लोचा है,
इत्ती सी बात तुम
मर्दों को समझ क्यों
नहीं आती है...
शुक्रवार, 2 नवंबर 2018
अभक्त
अभक्तों ने मिलकर
फिर से स्वांग रचाया है
चुनाव आते ही
फिर से प्रहसन बनाया है
मंचन में पुरुषोत्तम
की मर्यादा मर्दन का
दृश्य लगाया है
और तो और
अपने ओजस्वी संवादों में
मंदिर को रोटी
से बड़ा बताया है..
अरुण साथी
3/11/18
सोमवार, 1 अक्तूबर 2018
हे राम
पहले हम विधर्मियों की
मौत पे जश्न मनाते थे
फिर हम विजातियों की
मौत पे जश्न मनाने लगे
आहिस्ते आहिस्ते हमारी
संवेदना मरती जाएगी
और तब हम स्वजातियों की
मौत जश्न मनाएंगे
फिर हम पड़ोसियों की
मौत जश्न मनाने लगेंगे
और फिर एक दिन
राजनीतिज्ञ हमे मर देंगे
और हम अपनी ही
मौत का जश्न मनाने लगेगें
इंतजार कीजिये, बस
गनहिं महत्मा की जै
शनिवार, 25 अगस्त 2018
दलित एक्ट, आरक्षण, वोटबैंक और संवैधानिक शोषण
दलित एक्ट, आरक्षण, वोटबैंक और संवैधानिक शोषण
(अरुण साथी)
"आरक्षण को लेकर संविधान सभा में जब चर्चा चल रही थी डॉ भीमराव अंबेडकर ने अपनी आशंका जताते हुए साफ चेतावनी दी थी कि यदि हमने गैरबराबरी को खत्म नहीं किया तो इससे पीड़ित लोग इस ढांचे को ध्वस्त कर देंगे जिसे इस संविधान सभा ने इतनी मेहनत से बनाई है।"
इस ढांचे से उनका आशय भारत और भारत का लोकतंत्र से था। आज यदि हम गंभीरता से आजादी के 70 साल बाद विचार करें तो बिल्कुल यही स्थिति विपरितार्थ रूप में सामने खड़ी नजर आती है। गैरबराबरी को लेकर शुरू किया गया आरक्षण और हरिजन एक्ट आज गैरबराबरी की एक बड़ी चौड़ी खाई उत्पन्न कर दी है। जिसमें बड़ी संख्या में सवर्ण समाज के लोग पीड़ित बन चुके हैं।
आज मामला उल्टा है। कुछ प्रसंग की चर्चा लाजिम है। पहला प्रसंग राजस्थान के पत्रकार दुर्ग सिंह राजपुरोहित का। बिहार के एक बड़े अधिकारी ने फर्जी रूप से रमेश पासवान के नाम एक प्राथमिकी कोर्ट में दर्ज कराई और अपने रसूख का इस्तेमाल कर तत्काल पत्रकार को राजस्थान से गिरफ्तार कर बिहार ले आए और जेल में ठूंस दिया। मीडिया ने जब छानबीन की तो रमेश पासवान नाम के युवक ने किसी प्रकार के केस करने की बात नहीं कही।
दूसरा मामला नोएडा के सेवानिवृत्त कर्नल बीरेंद्र सिंह चौहान का है। उनके साथ मारपीट की जाती है। दबंगई दिखाई जाती है और फिर दबंग व्यक्ति अपनी पत्नी से दलित एक्ट लगाकर प्राथमिकी दर्ज करा देता है। देश की सेवा में समर्पित रहने वाले कर्नल जेल चले जाते हैं।
मामला उठता है और सीसीटीवी कैमरे में सारी बात सामने आती है कि कर्नल के साथ मारपीट की गई परंतु उनके जेल जाने के बाद जांच होती है और जमानत होती है। दोनों मामले में निर्दोष जेल जाते हैं और जमानत पर छूटते हैं। भारतीय राजनीति और वोट बैंक की राजनीति का यह बानगी भर है। आम जीवन में कई लोग इस से पीड़ित हैं।
तो क्या अंबेडकर की आशंका के अनुसार यह गैरबराबरी भारतीय ढांचे को ध्वस्त कर देगा? भारत के लोकतंत्र को ध्वस्त कर देगा?
अब आइए गैरबराबरी पर एक नजर डालते हैं..
प्रसंग 1
एक निजी विद्यालय के डायरेक्टर बता रहे हैं कि सैनिक स्कूल के प्रवेश परीक्षा में 95% और 98% लाने वाले सामान्य वर्ग के बच्चों का एडमिशन नहीं हुआ जबकि 40% और 50% वालों का हो गया। पूछते हैं कि बताइए इस बच्चे की मानसिकता पर क्या असर पड़ेगा? बच्चे पूछ रहे हैं कि सर मेरा एडमिशन क्यों नहीं हुआ?
प्रसंग 2
शेखपुरा जिले के कुटौत गांव में रमेश सिंह की भूख से मौत हो गई! सरकारी मदद लगभग शून्य रहा। स्थानीय अधिकारी वृद्धा पेंशन देने के लिए रमेश सिंह की मां को तीन-चार घंटे तक बीडीओ सवालों की बौछार से टॉर्चर करते हैं और केंद्रीय मंत्री के कहने पर भी अभी तक कुछ नहीं दिया गया। खैर, सामाजिक स्तर पर पहल हुई और उसके बच्चे को आर्थिक तथा शैक्षणिक मदद की व्यवस्था कर दी गई।
प्रसंग 3
नालंदा जिले के सारे थाना के खेतलपूरा गांव में पंकज सिंह की मौत किडनी फेल होने से इलाज नहीं होने की वजह से हो जाती है। एक माह पहले पंकज सिंह की पत्नी की भी मौत पथरी जैसे साधारण बीमारी का इलाज पैसे के अभाव में नहीं होने की वजह से हो जाती है। पंकज सिंह के बच्चे अनाथ हो गए। उसके पास एक कट्ठा जमीन नहीं है। एक डिसमिल का घर जर्जर। लोग सोशल मीडिया पे मदद की अपील कर रहे। मदद मिल भी रही। पर यह समाज के लिए स्थायी विकल्प नहीं है।
आइए हम गैर-बराबरी पर विचार करते हैं। कथित तौर पर सवर्णों अथवा वैश्यों के दमन, शोषण और अत्याचार दलितों के गैरबराबरी का मूल कारण था। सामंतवादियों को इसके लिए दोषी माना माना जाता है। परंतु आज हम सभी इस गैरबराबरी को लेकर सामंतवाद को समाज के लिए कलंक मानते हैं।
तब अब सोचिए आज सवर्णों में गैरबराबरी की स्थिति उत्पन्न कर दी गई है। सवर्ण का दमन और शोषण हो रहा है। इसी शोषण का नतीजा है कि गरीब सवर्ण भूख से मर रहे हैं। बीमारी के इलाज के अभाव में मर रहे हैं।
अब इस पर देखिए कि यह दमन और शोषण कर कौन रहा है! तो यह दमन और शोषण संवैधानिक स्तर पर किए गए प्रावधानों के अनुसार वोट बैंक के लोभी नेता कर रहें। मतलब साफ है कुछ मुठ्ठी भर सवर्णों अथवा सामंतवादियों के दमन और शोषण का बदला लेने के लिए एक लोकतंत्र में संवैधानिक व्यवस्था दी जाती है और 70 साल तक उसी दमन और शोषण के बदला लेने का परिणाम विपरीतार्थक रूप में सामने आता है जिसमे समूची जाति से बदला लिया जाता है। जबकि मुट्ठी भर लोग जो शोषण और दमन करते हैं वे जाति देख कर कभी नहीं करते। बल्कि अपनी जातियों का भी दमन और शोषण करते हैं।
अब थोड़ी चर्चा वामपंथ के वर्ग संघर्ष की। वामपंथ का वर्ग संघर्ष का मूल सिद्धांत समाज को गरीब और अमीर में बांट कर देखने की है। हालांकि अपने मूल सिद्धांत पर वामपंथी भी नहीं टिके और वह जातियों और धर्मों के आधार पर समाज को बांट कर देखने लगे, जिस की वजह से वे हाशिये पर चले गए। परंतु वर्ग संघर्ष का यही मूल सिद्धांत समाज को जोड़ने का सिद्धांत है। परंतु राजनीतिज्ञों के द्वारा समाज को जोड़कर राष्ट्र को सशक्त करने की बात कभी नहीं की जा सकती। क्योंकि समाज को विखंडित करने के बाद ही सत्ता को हासिल किया जा सकता है। और सभी दलों के राजनीतिज्ञों का एकमात्र उद्देश्य सत्ता को हासिल करना होता है। देश सेवा, समाज निर्माण उनका उद्देश्य कतई नहीं होता!
वोट बैंक की राजनीति देखिए कि जब सुप्रीम कोर्ट अपने अनुभव से कहता है कि दलित एक्ट का 95% दुरुपयोग हो रहा है और निर्दोष क्यों लोग सताए जा रहे हैं और इस में जांच कर गिरफ्तारी हो तो वोट के लिए सत्ताधीश विधेयक लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदल देते हैं! अब जब सुप्रीम कोर्ट पूछ रहा है कि आखिर यह आरक्षण कब तक रहेगा और एक IAS के बेटे और पोते को आरक्षण क्यों दिया जाना चाहिए तब इस पर भी वोट बैंक की राजनीति शुरु हो गई है!
तब इस गैर बराबरी का परिणाम अंबेडकर की जताई आशंका के अनुरूप एक दिन क्यों उत्पन्न नहीं होगा? एक दिन ऐसा आएगा जब इस गैर बराबरी की वजह से भारत का लोकतंत्र खतरे में पड़ेगा...?
मंगलवार, 14 अगस्त 2018
हाँ मैं लोकतंत्र हूँ...
हाँ मैं लोकतंत्र हूँ..
(अरुण साथी)
धर्म के नाम पे मार कर
आदमी को, उसी की
लाश पे जश्न मनाने का
सर्व सुलभ यंत्र हूँ...
हाँ मैं लोकतंत्र हूँ..
कर्ज से मरता किसान
मजदूरों का चूल्हा वीरान
अम्बानियों, आडानियों के
स्विस बैंक भरने का खड़यंत्र हूँ..
हाँ मैं लोकतंत्र हूँ..
भूख से मरते आदमी
को आश्वासन देते हुए
मुँह से निवाला छीन
वोट बैंक में बांटने का मंत्र हूँ
हाँ मैं लोकतंत्र हूँ.....
धर्म-धर्म में बाँट कर
जाति-जाति में छाँट कर
सत्ता सिंघासन पाने का
बस एक षडयंत्र हूँ..
हाँ मैं लोकतंत्र हूँ..
हाँ मैं लोकतंत्र हूँ..
(15/08/18)
स्वतंत्रता दिवस पे इससे ज्यादा कुछ नहीं दे सकता..धन्यवाद..
बुधवार, 8 अगस्त 2018
अंधेरा
चलो फिर से आंधियों को हवा देते है,
चलो हर एक चरागों को बुझा देते है!!
ये रौशनी ही फसाद करती है "साथी",
चलो इस गांव में अंधेरे को बसा देते है!!
है गर कोई गुस्ताख़ चरागों को बचाने वाला,
चलो सबसे पहले हम उसको ही मिटा देते है!!
जरा भी खलल न हो सके अंधेरों की दुनिया में,
चलो अब इस जमाने से आदमी को मिटा देते है!!
अरुण साथी (09/08/2018)
मंगलवार, 31 जुलाई 2018
नर-पिशाच
आदमी जैसा दिखने वाला
हर आदमी
आदमी नहीं होता
आदमी की शक्ल में
आजकल नर-पिशाच
भी रहते है..
नर-पिशाच
प्यासा होता है
लहू का
नर-पिशाच
भूखा होता है
हवस का
नर-पिशाच
होता है
आदमखोर
और
नर-पिशाच
निठारी से
लेकर मुजफ्फरपुर के
बालिका गृह तक
कहीं भी
दिख जाएगा
बलात्कार के बाद
हठात हँसते हुए
हमपे
हमारी राजनीति पे
हमारी सत्ता पे
हमारे समाज पे
हमारे कानून पे
हमारी न्याय व्यवस्था पे..
हा हा हा हा..
सोमवार, 30 जुलाई 2018
कातिल
वक्त वक्त की बात है, वक्त सबका हिसाब रखता है!
जलेगा वही जो सिरहाने अपनी आफताब रखता है!!
इस दुनिया का यही रिवाज है तो मान लो "साथी"!
स्याह फितरत लोग दूसरों के धब्बों का हिसाब रखता है!!
अब तो मंदिर मस्जिद फ़कत कातिलों के अड्डे है!
खूनी हाथों में वह मज़हब की किताब रखता है!!
गुरुवार, 19 जुलाई 2018
हलाला बनाम बलात्कार
(अरुण साथी)
पिता समान ससुर से
सेक्स की बात को
मजहब के आड़ में
हलाला बता
सही ठहराते हो
हो शैतान
और तुम
मुल्ले-मौलवी
कहलाते हो
और
हलाला रूपी बलात्कार
का विरोध करने
वाली एक महिला
से भी डर जाते हो
हद तो यह कि निदा को
शरीया का हवाला देकर
सड़े हुए अपने
धर्म से निकालने का
फतवा सुनाते हो
और तो और
इन शैतानों के साथ
देने वाले
खामोश रहकर जो
जो तुम मुस्कुराते हो
तुम भी जरा नहीं
लजाते हो...