गुरुवार, 16 सितंबर 2010

गुलजार की कुछ नज्में

अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो, कि दास्ताँ आगे और भी है
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो, कि दास्ताँ आगे और भी है
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
अभी तो टूटी है कच्ची मिट्टी, अभी तो बस जिस्म ही गिरे हैं
अभी तो किरदार ही बुझे हैं।
अभी सुलगते हैं रूह के ग़म, अभी धड़कते हैं दर्द दिल के
अभी तो एहसास जी रहा है।

यह लौ बचा लो जो थक के किरदार की हथेली से गिर पड़ी है
यह लौ बचा लो यहीं से उठेगी जुस्तजू फिर बगूला बनकर
यहीं से उठेगा कोई किरदार फिर इसी रोशनी को लेकर
कहीं तो अंजाम-ओ-जुस्तजू के सिरे मिलेंगे
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई

आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई

पक गया है शज़र पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई

फिर नज़र में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुग़ालता है कोई

देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई

हिंदुस्तान में दो दो हिंदुस्तान दिखाई देते हैं
हिंदुस्तान में दो दो हिंदुस्तान दिखाई देते हैं
एक है जिसका सर नवें बादल में है
दूसरा जिसका सर अभी दलदल में है
एक है जो सतरंगी थाम के उठता है
दूसरा पैर उठाता है तो रुकता है
फिरका-परस्ती तौहम परस्ती और गरीबी रेखा
एक है दौड़ लगाने को तय्यार खडा है
‘अग्नि’ पर रख पर पांव उड़ जाने को तय्यार खडा है
हिंदुस्तान उम्मीद से है!
आधी सदी तक उठ उठ कर हमने आकाश को पोंछा है
सूरज से गिरती गर्द को छान के धूप चुनी है
साठ साल आजादी के…हिंदुस्तान अपने इतिहास के मोड़ पर है
अगला मोड़ और ‘मार्स’ पर पांव रखा होगा!!
हिन्दोस्तान उम्मीद से है..
 

गुरुवार, 9 सितंबर 2010

जरूरी तो नहीं।




जरूरी तो नहीं।

हर ख्वाब की तामीर हो,
जरूरी तो नहीं।
हर शक्स की अच्छी तकदीर हो,
जरूरी तो नहीं।

माना कि मदहोश कर देती हो तुम शाकी,
बहक जाय हर शख्स,
जरूरी तो नहीं।

बहुत हसीन शोहबतें तेरी हमदम,
हासील हो सभी को ,
जरूरी तो नहीं।

सच है, तेरे चाहने वाले हैं कई,
बन जाओ सभी की ,
जरूरी तो नहीं।

तेरा आइना तुझे जी भर के देखता होगा,
हर सय की आइने सी तकदीर हो,
जरूरी तो नहीं।

कोई तो तेरे ख्वाब में आता होगा,
मुझे भी तुम बुलाओं,
जरूरी तो नहीं।

चाहा है मैंने तुझे जानो दिल से बढ़कर,
तुम भी मुझे चाहो,
जरूरी तो नहीं।

शनिवार, 4 सितंबर 2010

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