रविवार, 30 जनवरी 2022

सृजक

एक मुठ्ठी काली मिट्टी

एक मुठ्ठी सफेद
एक मुठ्ठी दोमट
एक मुट्ठी बलुआही

खेतों की हरियाली
समुंदर की एक
सफेद बून्द
और
अरुणाचल से
एक मुट्ठी
लालिमा
लेकर
गढ़ना चाहता हूँ
माँ भारती को


तब
जबकि
कई लोग
अपने अपने
रंग से
रंग देना चाहते है
माँ भारती को

कोई हरा
कोई सफेद
कोई केसरिया
कोई लाल
और
कोई कोई
स्याह....भी..

15 टिप्‍पणियां:

  1. तुष्टीकरण के जन्म दाता टकला यदि नहीं पैदा नहीं लेता तो देश पहले आजाद होती, बटवारा बराबरी की होती भगत सिंह राजगुरु और कई क्रांति कारी की बलि नहीं चढ़ती, न जिन्ना होता न भारत माता के टुकड़े होते।

    मैं आज से संकल्प लेता हूं की अखंड भारत के सपनो के साथ आगे बढ़ता जाऊंगा परिस्थिति चाहे जो भी रहे, टकले बापू तुमने हमको एक मौन हथियार दिया अपना नाम बनाने के लिए भारत मां को दो हिस्से में बाट दिया।

    टकला यदि आज जीवित होता तो मैं ठोकता उसे, और नाथू राम गोडसे मेरा नाम होता

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (31-01-2022 ) को 'लूट रहे भोली जनता को, बनकर जन-गण के रखवाले' (चर्चा अंक 4327) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  3. कोई हरा
    कोई सफेद
    कोई केसरिया
    कोई लाल
    और
    कोई कोई
    स्याह....भी
    वैसे तो मैं भगत सिंह के विचारों पर चलने वाली हूं पर मुझे गांधी जी की यह बात बहुत ज्यादा पसंद है!
    विविधता में एकता यही हमारी विशेषता भगत सिंह जी भी सभी धर्मों के लोगों में एकता लाना चाहते थे वे कभी नहीं चाहते थे कि लोग धर्म जाति के नाम पर आपस में ही लड़े!

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    उत्तर
    1. जी, और अब समय बदला है। वैश्विक परिदृश्य में भी देखा जाए तो मिल जुल कर रहना ही मानवता का कल्याण है

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  4. अपना मत रखने का हर किसी को अधिकार है ...
    गांधी जी स्वयं इस बात के कायल हैं ...

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  5. देशभक्ति के रंगों से ओतप्रोत भावपूर्ण सुंदर सृजन

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  6. हृदय से अनेकांत को एक साथ पिरोना ही सच्ची देशभक्ति है।
    सुंदर सृजन।

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  7. सुंदर सृजन । हमारी माँ भारती कहाँ कहती है ,आपस में लड़ो, वो तो यही चाहती है ,सब मेल -मिलाप से रहें । और हम लाल ,हरा ,केसरिया कर रहे हैं ।

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